मानव धर्म | Manav Dharam
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
134
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
He was great saint.He was co-founder Of GEETAPRESS Gorakhpur. Once He got Darshan of a Himalayan saint, who directed him to re stablish vadik sahitya. From that day he worked towards stablish Geeta press.
He was real vaishnava ,Great devoty of Sri Radha Krishna.
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( ११)
(४५ किसी कामम रुपया खग गया, पासमें है नहीं, न
देनेसे इनत जाती है, बडा भय है, प्रायः भले-भरे आदमी ऐसी
अवस्थामे वैय छोडकर आत्महत्यातक कर बैठते हैं । अथवा
पापी अधिकारी कहता है, (तुम सत्य बोखोगे तोमार दिये
जाओगे ।' “भगवान्का नाम लोगे तो जीभ काट ली जायगी ।'
श्वम नहीं छोडोगे तो दीवारमे चुनवा दिये जाओगे ।' (तुम अपना
सतीत्व त्यागकर व्यमिचारमें प्रवृत्त न होओगी तो सिर उड़ा दिया
जायगा ।' रेसी धमकिर्योमे मनुष्य प्राणभयसे धैर्यको छोड देता
है । इस अवस्थामे जो पैर्थको सँमारुता है, धैर्य उसके धर्म,
परलोक ओर काीर्तिकी रक्षा करता है ।
(५) एक रोगी है, उसे मीठा खानेका व्यसन है, पेठमें
बीमारी हैं, बैद्यने मीठा ग्वानेके लिये मने कर दिया है परन्तु वह
नहीं मानता । मीठा देखते ही उसका धैर्य टूट जाता है और
परिणाममें मृत्युका ग्रास होना पड़ता है ।
(६) प्रह्मादका शरीर हाथीसे कुचलवाया जाता है, सॉपोंसे
कटवाया जाता है, गुरु गोविन्दसिहके बालक-पुत्रोंको दीवारमें
जीते जी चुनवाया जाता है, ऐसी अवस्थामे पैये रखनेसे ही
आजतक उनका नाम अमर है । पैय न रखनेवाठा थोड़े समयके
स्यि शारीरिक कष्टसे भले ही मुक्त हो जाय, परन्तु उसका
परिणाम बड़ा ही दुःखद होता है ।
User Reviews
No Reviews | Add Yours...