शेर-ओ-सुखन [भाग ४ ] | Sher-O-Sukhan [ Part 4]
श्रेणी : कहानियाँ / Stories
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
244
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)है
[१८८०- १९५१६
र आशिकहुसेन साहब “सीमाव' १८८० ई०मे आगरेमे जन्मे ।
अरवी-फारसीकी पूरणेरूपेण शिक्षा प्राप्त करनेके अतिरिक्त एफ °
ए० तक अग्रेजी भी पटी । गायरीका शौक स्वभावत था। स्कूलर्मे पठते
हुए फारसीकी पाठ्य पृस्तकोके फारसी अशञरको आप उर्दूका रूप
देकर अपने रिक्षकको दिखाते रहते थे । यही आपका दैनिक काये था ।
एक वार जव आपने वोस्ताकौ एक कानी नज्म करके शिक्षकको दिखाई
तो उन्टोने उसी पृष्ठपर यह् गेर लिख दिया--
जब नहीं हैं शोर कहनेका झाऊर ।
(फिर भला हैं शेर कहना कया ज़रूर ?
लेकिन मुसकराकर यह भी फर्माया कि “कल फिर किसी फारसी
नज्मका तर्जुमा उर्दूमे नज्म करके लाना ।” इसी तरह आपका धीरे-
घीरे अम्यास वढता गया। पिताके निघनके कारण आपको १७ वर्पकी
उम्रमे कालेज छोड़ना पडा, और आजीविकाके लिए कानपुर जाना पडा ।
अभीतक आप शायरीमें किसीके वाकायदा शणिप्य नही ये। अत मुगा-
यरोमे गज़ल कहनेका साहस नहीं होता था। १८६८ ई०में आप मिर्जा
दे
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