खोटा बेटा | Khota Beta

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Khota Beta by विशम्भर नाथ शर्मा - Vishambhar Nath Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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परिनलपिकल पेललिरतिन्यपिनलिनरियरिियरनिदि:ििटपनट्िकरियिफफरफटीनी पर किफकरजलपलिफटीज जप फवपटलस्लफिलफटनफलनटफटफरस पर सिफकलपफननिनलकनलफिल निकलकर पी सबका हृदय उसकी शोर भ्राकषित हभ्रा । सबने एक स्वर से चिल्ला कर कहा--“युवराज चि रजीव, युवराज की जय हो, हम युवराज के लिए प्राण देने को तय्यार है ।” फतेहुसिह ने अपनी तलवार उठा कर कहा-''आश्,हम सब प्रतिज्ञा करे कि मरते दम तक युवराज का साथ देगे ।” इतना कह कर सभो ने श्रपनी अपनों तलवारे चूम ली । प्रभी तक कुमार चुप खड़ा था । अब उसने उच्च स्वर से कहा- ““भाश्यो, सोते हुए शत्रू, पर श्राक्रमण करना क्षत्रिय धर्म के विरुद्ध है । हमे रात भर ठहर कर प्रातःकाल प्राक्रमण करना चाहिए ।”” सबेरा होते ही घमासान युद्ध छिड गया । गुवराज रत्नसिह्‌ के योद्धा अपने युवराज के प्रेम मे पागल हो रहे थे । भ्रतएव वे जान पर खेल कर लड़ । एसी दला मे उनके सामने कौन टिक सकता था !१ कुछ घर््यो मे युवराज की विजय होगई । श्रधिकाश शत्र, सेना रणक्षेत्र मे वीरगति को प्राप्त हुई जो शेष रहे वे कैद कर लिये गये । युध्द समाप्त होने पर युवराज ने शेरसिह को न पाया । उसने घबरा कर पूछा-शेरसिंह कहा है १ फतेहसिह ने कहा; मैंने उन्हे किले कै सरदार को रोकते देखा था उसके पचात मभ वह नही दिखाई पड इसी समय कुछ श्रादमी देरसिह को उगये हुए लये । शेरसिह घावों के कारण मतप्राय हो रहा था युवराज ने ब्याकल होकर शोरसिंह को अपनी गोद से लिटा लिया श्र शेरसिह के सिर पर हाथ फेरने हुए कहा “काका यह वया हुआ ?' शेरसिंह ने धीरे धीरे श्रि खोल कर युवराज को देखा श्रौर क्रिन्ित म॒स्कराकर कहा-'“मातु भूमि की विजय 1 इतना कहकर सेरसिंह ने सदेव के लिए श्राँखें बन्द कर ली । | ।




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