कर्म साधना | Karm Shadhna

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Karm Shadhna by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कम -साघना ४ ग्रवस्था में एक क्षण के लिए भी नहीं भूल सकता । पत्ति-वियोंग तथा अन्य सांसारिक कष्टों से वह जज॑र हो चुकी श्री । शाम्तिके घरमें पंडित जी के बाद दरिद्रता रायण विराजमान होगये । उनकी कुपा हो तो कँसे कोई कष्टों से मुक्ति पा. सकता है ? भाग्यवान्‌ पुरुषों का भार दरिद्रदेव ही ग्रहण करते हैं । इस नियम के पालन में थीड़ी भी भूल नहीं हुई थी । बहू दिन-प्रतिदिनि उपेक्षित होती जा रही थी । व शान्ति को श्रपने हृदय की सहन-शक्ति पर दुःख के साथ श्राइचपे भी हो रहा था । वहू सोब रही थी-र्जवधाता मे मेरे हृदय को कितना कठोर बनाया है जो इस कर्ठिन बज्पात से भी बिदीणं नहीं होता श्रौर न पत्तिंवियोग की धधघकती ज्वाला से ही जल सका । इतना दुम्साहुस करने की सामथ्य कहाँ से पाई ? पतिदेव मैंने कौन- सी श्रवज्ञा की थी जो मुभे दर-दर ठोकरें खाने के लिए छोड़ गये ? शाप तो संसार के सब तरह के पापों से मुदवित पाने के लिए उपाय वत्तलाते थे कया मेरे प्रापश्वित्‌ का कोई उपाय नहीं था ? न ्द थे रद शान्ति के पतिदेव की श्राय वर्तमान व्यय के लिए भी पर्याप्त न थी । शास्ति बड़ी कुशलता से कार्य-संचालन करती थी किन्तु बचत करना _ हर दशा में भ्रसम्भव था. । दो वर्ष की इस अवधि में ही सम्पूर्ण ग ग्राभूषण बिक गए थे बर्तन बिक गए श्रौर श्रोढ़ने-बिछाने के वस्त्र भी श्रिक गए । भविष्य के लिए कोई श्रवलम्ब न था । शान्ति के सामने दो बच्चों के पालन-पोषणु की कठिन समस्या थी । उसने किसी पुस्तक में माँ-बाप के कर्तव्य के सम्बन्ध में पढ़ा था-- पमा-बाप का परम करंव्य होता है कि वे अपने बच्चों का लालन-पालन कर उन्हें योग्य बनायें । यदि साँ-बाप श्रपने कर्तेव्य में श्रसफल होते हूं ती वे केवल अपने बच्चों के प्रति ही नहीं श्रपितु सपने देश के साथ भी घोर प्रन्याय करते हैं। यही कारण था कि हमारी प्राचीन सभ्यता में




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