हमारी माताएं | Hamari Mataye

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Hamari Mataye by दिनेश कुमार - Dinesh Kumar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मानुमती हल्दी घाटी के युद्ध के प्थात हिन्दू-पाँत महाराणा प्रताप की दशा बहुत विचित्र हो गई थी । बह रातभदेन जंगलां और पहाड़ों में छिपा फिरता था । हजारों सच्चे वीर योद्धा काम आ चुके थे । मेवाड़ के सारे किले एक-एक करके अकबर के हाथ जा चुके थे ओर अकबर की फोज उसका इप प्रकार पाछ करता “> थी कि जैसे शिकारी कुत्ते हिन अथवा व्याघ्र के पी मभते फिरते है । कष्ट-पर-कष्ट और .विपत्ति-पर-दिपत्ति उसके सिर प्र आई । कई दिन और रातें खगातार जागते गुजुर जाता थी और एक सखी रोटी का टुकड़ा उस के मुख में न पड़ता था । ... राजा और रानी तथा उनके छोटे-छोटे बच्चे और मेवाड़ के सभी “ राजपूत दुख और क्ढेश सहन करते थे, परन्तु अकबर की. अधघीनता से सबको घणा थी । शरीर को एक-न-एक दिन मरना है मर जाय, आत्मा प्र किरी का चश्च नहीं चलता, बीर राजपूत इस नियम पर्‌ अन्तिम केण ठक चलते थे जब राणा प्रताप बहुत ठचार हो गये तो उन्होंने अपनी अजा फो आज्ञा दी कि मेवाड़ को उजाड़ हो जाने दो, यहाँ कोई मनुष्य न रहे। सब लोग मेरे साथ पवत प्र चलो, वहां स्वाधीनता कै साथ रहगे । प्रताप का यह निश्य इसलिए था




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