गर्विता | Garvita
श्रेणी : कहानियाँ / Stories
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
192
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)दूसरा परिच्छेदे
कक +
शतै
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वद्धाको दुलारोके मनका माव सम्नमुनेपे देर न सीः] रो भी
उखने अपने मनका भाव छिपाश्ठर कदा है ऋतौ रतिम जामो ।
दुछारी ने मुस्कुराते हुए चृद्धाकी शोर देखा। सास्कै परपर
हाथ रखकर उसने कहा--सच | मेरी देह छऊूर छाप कहें । वद्धाने
अपना पांव खी'चकर क्रोघसे कहा--हृट ममागधिन ! 'अभागिनकी
वेटी झाप भी मरेगी योर मुस भी मार डालेगी ।
दुखरो €ठकर हखती हदे वर्षसि चटी गयी । वृद्धा वुरसी-
चवूतरेो माथा टेककर कहने खी--द प्रभो ! इस बुढ़ोतीमें मेरे
पानो यह वेडी क्यों कण दौ १ कया सुमे मरने देनेकी मो तुम्हारी
इच्छा नही ' है
दिन चले ज्ञाने ठंगे। कभी व्मांघ पेट, कसी भर पेट खाकर,
सौर कभी एकदम निराहार रह जाना पड़ता ! कटिन परिश्रम करके
भी यदि दुजासी वृद्धाको जाधा पेट खिला पादी तो अपनेको छतां
सममती--भगवानको धल्यवाद् देतो 1
घोर ककारे मी खासकत प्रति इस कटिन सात्मन्याग एवं
श्रद्धा-भक्तिको देखकर टोछेकी च्ियां दुलरोकी भूरि-भूरि प्रशसा
कतो र्थी । यदुकी दादीने कहा--यहा { सान्तात् दक्ष्मीका रूप हे ।
किन्तु यद्द लक्ष्मीकी बात बहुर्तोको न. सुद्दायी । उनमेसे चम्पा
सबसे प्रधान थी । उसने यदुकी दादीके कथनका प्रतिवाद करते हुए
शेषमें कह[--मद्दा | सचमुच छ्मीका रूप है ! जिसको पति, फटी
संख भी नहीं देखता, अपना दूसरा विवाह कर लिया; बद्दी चली
सती-सावित्री चनने ।
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