अष्टाध्यायी के आदेश सूत्र एक समीक्षात्मक | Astthadhayaiee Ke Adesh Sutra Ea Samikshatamak

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : अष्टाध्यायी के आदेश सूत्र एक समीक्षात्मक  - Astthadhayaiee Ke Adesh Sutra Ea Samikshatamak

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about आद्याप्रसाद - Aadhyaprasad

Add Infomation AboutAadhyaprasad

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
11. वृत्तिकार एवं टीकाकार पी समावेश एवं विकार सस्ता तव नहीं मानते और स्रग्वी सशी कौ च्व वै एकाल्‌. हौ या मनेकाल्‌ आविश ही कहते है | पाणिनीय प्रवाद कै प्रक्रियानस्नायौ व्याकरण प्न्य ^ नेयाकटरणण ्निःद्भ्वान्त कप कौ तत्वसौश्विनीं लमा क रचयथिता माचा लानन्त्र सरस्वती नै -मद्रै्णौ स लति विधानन किया दै - प्रत्यक्ष तथा -मानपानिङ । प्रत्यत सद्रशण ई ^ म्तः पनृमाविद्ित मस्त स्थानी को होनेवाला 17 पावश एवं पानमानिक मक्रिशण हैं लि ८ तिप्‌ क दानवाला तु अश 1“ अन्तैः पे प्यानं एवं -मादैशा शब्वतः उपपिष्ट हुए हैं किन्त एरुः“ पू मँ ह्‌ स इकारान्त स्थानी तथा त प्तौ उकारान्त पाबिश ममुगित हए 2 ।€ मावेशों कै सम्बन्ध में विचार करते इए नु मन्म विध्यौ कौ फोर ध्यान जाता है| माणप, लौप,+ निपातन. त्व माति के विष्ठया प -मरेष्ा विधि के समानि तष्य अथवा वर्णसलमुवाय का हटना फर लुहना आयि बेखा लाना ॐ, पाध्यकार के स्व. सर्वपबाबिशा वाक्षीफ्सस्य प्राणिनः 7 तथा * पनागपरकामा सागयका: जाबेशा: * मै. इत्यादि वचनों प्लारा सागपों का सावेशस्पप तथा सर्वोदिशार्थ वा वचनप्रामाण्यात्‌ > वार्तिक तथा वार्षिक के विवेचन क्रम मप्ें - “^ सक श्ल लपः प्तदिशा यया म्यः : 1 माचाप्र्तू्तिर्जप्पयाति दनक श्त मनप सतदिश वन्तीति + द्त्याचि पाष्यिवचनों मैं. ^ प्रत्यय क), नोप क्ण मदस्य स्वीकार शिया गवा 21 दृता प्रकाद दित्य के प्रसंग गै ग्वाष्यकमादर मै त्प पाबेश गाघ्सा श्िस्वारणा (पथय यस्य स्िर्ववनमा-रग्यतं कवि तप्य स्याने तात म्व शिः प्रयोग इति - गहाप्वाष्य>ः मादि विष्य पर विचार किया है । इतना ही. नहीं माठने अध्याय कै शब्वाज्ञत्व को इन्होंने पक्त्वाबेश स्वीकार सिया है | इसी प्रकार श्व कौ निपातन दारा न्ष करने वाले सो में सावेश पा निषातन कीना पी ॥ जाता दे लेसे- * कायुयप्नययो ए्पम्यार्ध“ * क्रयूयस्लवर्थे , * 1ययप्रवयों 'स्सन्वा सिर इत्याबिस्ूजों . द्वारा अयाविश निपातित इमा हैं | _ मस्त -भागै शन लौ, ` आगम [हत्व निपातन माति विधियों तथा अदै्टाधिश्वि से इनके स्ाप्य बैषप्य का _ संक्षिप्त चिवेचन किया लाता है | भर ४ 4 | । शल्क ऋ कपर्सिखि के क्रम में लख प्रकृति था प्रत्यय क -अतरत्र वणो क अतिरिक्त कोई गई सन्य वर्ण मनी प्मूयमाण डौ तौ इनके साथ उस वर्ण का योग कर लिया लाता हैं 1 इस प्रकार का वर्णयोग- विधान मागम्िष्वान का लाता हैं । लखा ४ शक्तं हनि वातै वर्ण का मागप कहते हैं | जिसे पागय हो वह मागपी कहलाता हैं 1. _ तैत्तिरीय प्रातिशष्वय मँ मागम का स्वरूप शिप्न प्रकार से स्पष्ट विः 7 गदया हैं | * मन्यन विद्यपानस्त थी वर्ण: पदति: क 2२५ जागप्यप्रान तुन्सत्वाल्‌ म्य माणप हि त्यात ४ | * 1.3 ` 2 इस प्रकार प्रकृति प्रत्यय मै विद्यमान वर्ण के सर्तिशिक्ति किसी म्यी अन्यन्न । . विद्यमान मधकर वर्णं कौ श्रुति हलो तौ र्ना मागत वणं गप्र कहलाता है . शास्त्रकार मागम को प्रपलन कहते थे पति नै वी *उपन मागप्रः विक्रार मादः ~ पप्ना कदा ट्त स्पूश्रम्पाष्य में पूर्वेपकषा का उपस्थं कम




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now