अष्टाध्यायी के आदेश सूत्र एक समीक्षात्मक | Astthadhayaiee Ke Adesh Sutra Ea Samikshatamak

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Astthadhayaiee Ke Adesh Sutra Ea Samikshatamak by आध्याप्रसाद - Aadhyaprasad

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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11. वृत्तिकार एवं टीकाकार पी समावेश एवं विकार सस्ता तव नहीं मानते और स्रग्वी सशी कौ च्व वै एकाल्‌. हौ या मनेकाल्‌ आविश ही कहते है | पाणिनीय प्रवाद कै प्रक्रियानस्नायौ व्याकरण प्न्य ^ नेयाकटरणण ्निःद्भ्वान्त कप कौ तत्वसौश्विनीं लमा क रचयथिता माचा लानन्त्र सरस्वती नै -मद्रै्णौ स लति विधानन किया दै - प्रत्यक्ष तथा -मानपानिङ । प्रत्यत सद्रशण ई ^ म्तः पनृमाविद्ित मस्त स्थानी को होनेवाला 17 पावश एवं पानमानिक मक्रिशण हैं लि ८ तिप्‌ क दानवाला तु अश 1“ अन्तैः पे प्यानं एवं -मादैशा शब्वतः उपपिष्ट हुए हैं किन्त एरुः“ पू मँ ह्‌ स इकारान्त स्थानी तथा त प्तौ उकारान्त पाबिश ममुगित हए 2 ।€ मावेशों कै सम्बन्ध में विचार करते इए नु मन्म विध्यौ कौ फोर ध्यान जाता है| माणप, लौप,+ निपातन. त्व माति के विष्ठया प -मरेष्ा विधि के समानि तष्य अथवा वर्णसलमुवाय का हटना फर लुहना आयि बेखा लाना ॐ, पाध्यकार के स्व. सर्वपबाबिशा वाक्षीफ्सस्य प्राणिनः 7 तथा * पनागपरकामा सागयका: जाबेशा: * मै. इत्यादि वचनों प्लारा सागपों का सावेशस्पप तथा सर्वोदिशार्थ वा वचनप्रामाण्यात्‌ > वार्तिक तथा वार्षिक के विवेचन क्रम मप्ें - “^ सक श्ल लपः प्तदिशा यया म्यः : 1 माचाप्र्तू्तिर्जप्पयाति दनक श्त मनप सतदिश वन्तीति + द्त्याचि पाष्यिवचनों मैं. ^ प्रत्यय क), नोप क्ण मदस्य स्वीकार शिया गवा 21 दृता प्रकाद दित्य के प्रसंग गै ग्वाष्यकमादर मै त्प पाबेश गाघ्सा श्िस्वारणा (पथय यस्य स्िर्ववनमा-रग्यतं कवि तप्य स्याने तात म्व शिः प्रयोग इति - गहाप्वाष्य>ः मादि विष्य पर विचार किया है । इतना ही. नहीं माठने अध्याय कै शब्वाज्ञत्व को इन्होंने पक्त्वाबेश स्वीकार सिया है | इसी प्रकार श्व कौ निपातन दारा न्ष करने वाले सो में सावेश पा निषातन कीना पी ॥ जाता दे लेसे- * कायुयप्नययो ए्पम्यार्ध“ * क्रयूयस्लवर्थे , * 1ययप्रवयों 'स्सन्वा सिर इत्याबिस्ूजों . द्वारा अयाविश निपातित इमा हैं | _ मस्त -भागै शन लौ, ` आगम [हत्व निपातन माति विधियों तथा अदै्टाधिश्वि से इनके स्ाप्य बैषप्य का _ संक्षिप्त चिवेचन किया लाता है | भर ४ 4 | । शल्क ऋ कपर्सिखि के क्रम में लख प्रकृति था प्रत्यय क -अतरत्र वणो क अतिरिक्त कोई गई सन्य वर्ण मनी प्मूयमाण डौ तौ इनके साथ उस वर्ण का योग कर लिया लाता हैं 1 इस प्रकार का वर्णयोग- विधान मागम्िष्वान का लाता हैं । लखा ४ शक्तं हनि वातै वर्ण का मागप कहते हैं | जिसे पागय हो वह मागपी कहलाता हैं 1. _ तैत्तिरीय प्रातिशष्वय मँ मागम का स्वरूप शिप्न प्रकार से स्पष्ट विः 7 गदया हैं | * मन्यन विद्यपानस्त थी वर्ण: पदति: क 2२५ जागप्यप्रान तुन्सत्वाल्‌ म्य माणप हि त्यात ४ | * 1.3 ` 2 इस प्रकार प्रकृति प्रत्यय मै विद्यमान वर्ण के सर्तिशिक्ति किसी म्यी अन्यन्न । . विद्यमान मधकर वर्णं कौ श्रुति हलो तौ र्ना मागत वणं गप्र कहलाता है . शास्त्रकार मागम को प्रपलन कहते थे पति नै वी *उपन मागप्रः विक्रार मादः ~ पप्ना कदा ट्त स्पूश्रम्पाष्य में पूर्वेपकषा का उपस्थं कम




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