कवियों का विवेचनात्मक अध्यन भाग १ | Kaviyo Ka Vivechanatmak Adhyan Bhag I

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Kaviyo Ka Vivechanatmak Adhyan Bhag I by अज्ञात - Unknown

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about अज्ञात - Unknown

Add Infomation AboutUnknown

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
चरदाई ] विवेचनात्मक झ्रघ्ययन [ १३ स्पष्ट ही इस वात की सुचक है। इस उक्ति से कवि को भाषा की एक श्रौर विशेषता भी लक्षित होती है--श्ौर वह है श्रनुस्वारात्मिकता 1 इस प्रवृत्ति का मृख्य कारण छन्दोनुरोघ से शब्दान्तर्गत तया शब्दान्त में लघु व्यंजन को दीघं फरना है । छन्द'पुति के लिए कवि ने दीर्घीकररण श्रन्थ उपायों से मी क्रिया ह 1 “निसान' शव्द का नीसान' इसी प्रवृत्ति के कारण ही हुआ है । .. इसके श्रतिरिक्त रासो कौ भाषा से मनोहरः के स्यान पर 'मनोहरय'” के हारा स्वार्थक प्रत्यर्यो के प्रयोग को प्रवृत्ति, गति” का ममत्ति' घौर मानव का “मानन्व' हो जाने से द्वित्वीकरण की प्रवृत्ति भ्रौर धमं के लिए घ्रम्म' में छन्द.ुति के लिए रेफ फे मनमाने परिवर्तन की प्रवृत्ति लक्षित होती ह 1 साधारण रूप से चन्द वरदाई की भाषा मे संस्कृत तत्सम, श्रपश्चश तत्सम, श्रपभरंड तद्भुव, श्रनुकररणात्मक श्रौर देशी तथा प्ररवी-फ़ारसी के तत्सम श्रौर तद्भुव शब्द प्राय. मिल जाते हैं मूलत. रासो फी भाषा डिगल मानी जाय श्रयवा पिगल, इस विषय में दिद्दानों में मतभेद है परन्तु श्राधुनिक रूप मे रासो फी भाषा विल्कुल श्रन्यवस्यित है । जैसा कि श्राचार्य शुक्ल ने भी कहा है--“भाषा की कसौटी पर यदि ग्रथ को फसते हूँ तो श्रौर भी निराश होना पड़ता है क्योंकि वह बिल्कुल बेठिकाने है-- उसमें व्याकररण श्रादि की कोई व्यवस्था नहीं है ।” इतना होने पर भौ यह्‌ तो श्रवशष्य कहा जा सकता ह कि रासोकार काव्य-कला फे मर्मो से परा श्रभिज्ञ या 1 उन स्यलो पर जहां कवि ने जमकर किसी विषय क्ता वर्णन किया हैं चहाँ उसकी शब्दावली में भाषा श्रौर भाव-ध्वनि दोनो का सामजस्य दृष्टिगत होता है । कवि ने श्रपनी प्रौढता भाषा में ही नहीं; लक्षणा-व्यंजना श्रादि दाक्तियों के प्रयोग में भी दिखाई है। कहीं-कहीं तो उसने प्रतोकात्मक




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now