फागु काव्य | Fagu Kavya
श्रेणी : काव्य / Poetry, साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
282
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)फागु काव्य, परिवेश, परपरा श्रौर श्रवृत्तियों 3 [ १३
तुज्ञ पयोवर चल्लसइ सिंगार थपक्का,
कुसुम वाणि निय अ्मिय कु भ किरथापाणि मुझा ॥
इस सौन्दयं गोव मे कवि की शैली ने भी श्पना चमत्कार प्रदर्शित
किया है कोशा की इयामल वेणी, कामदेव के इयाम खड़ग सहदा लहलहा रही है ।
उसकी सरल तरल श्रौर र्यामल रोमावच्ति सुश्चोमित हो रही थी । उत्तङ्क पयो-
घर ऐसे प्रतीत हो रहे हैं जैसे श्रू जार रूपी पुष्प के स्तवक हो झथवा कामदेव ने
प्रमृत कलशो को लाकर रख दिया हौ । ।
५. धामिकता--
फागुकारोने वैयक्तिक मान्यताश्रो के श्राधार पर विभिन्न मोड दिये है ।
यद्यपि वसन्त वर्णन फागुश्नो का प्रमुख विवेच्य विपय था, परन्तु शनैः शनः वसन्त
घन गौरा होता गया । वह केवल रूढि के रूप मे प्रयुक्त किया जाने लगा । जैन
फायुकारों ने फागुश्रो को धार्मिक मोड दिया । जिणस्तवन, प्रकृति श्री श्र सासा-
रिक विभूति पर सयम श्री की विजय, इन्द्रिय निग्नह, श्रपरिप्रह, साँसारिक उपा-
दानो से श्रसपृक्त होने की वृत्ति का ही श्रघिक वरणुन किया । श्रपने फगुभ्रौ को
सरस वनाने के लिए स्थूलिभद्र कोशा श्रौर नेमिनाथ राजल की कथा को उपजीव्य
बनाया गया । नैमिनाथ श्रोर राजीमती की कथा इतनी लोकप्रिय हुई कि लगभग
दो दर्जन फागू काव्य इस कथा से सम्बन्धित लिखे गये । इनके श्रलावा जैन कवियों
ने कुछ ऐसे फागु काव्य लिखें, जो श्राध्यात्मिक विषयों से सम्बन्ध होते थे प्रथवा
किसी तीथें की महिमा-स्तवन से सम्बद्ध । विवेच्य विपयो का वैविध्य जैन फागुकारो
मे बहुत श्रघिक पाया जाता है । लेकिन झ्न्त सभी का सयम श्री मे होता है ।
वैष्णव फागुकारो ने कृष्ण-गोपिका श्रौर छष्ण-रुकमिणी को भ्रपना विवेच्य
पनाया } लौकिक फागु श्रव्यं ही भ्रपनी परस्परा परस्थिररहे। ४०० वर्षो के
दीघं श्रन्तरालमे फागु काव्यो की रचना होती रही, जिससे भ्राभास होता है कि
यह काव्य रूप यधेष्ट लोकप्रिय रहा होगा । । फागु्रो का श्राकार कही लघु हे,
कही वृहत् । परन्तु यह सुनिश्चित है कि फागु काव्यो मे वह गहनता, व्यापक श्रनु-
भरत, मावोर्मियों का उद लन नहीं श्रा पाया जो किसो काव्य-रूप में अपेक्षित है)
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