फागु काव्य | Fagu Kavya

Fagu Kavya by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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फागु काव्य, परिवेश, परपरा श्रौर श्रवृत्तियों 3 [ १३ तुज्ञ पयोवर चल्लसइ सिंगार थपक्का, कुसुम वाणि निय अ्मिय कु भ किरथापाणि मुझा ॥ इस सौन्दयं गोव मे कवि की शैली ने भी श्पना चमत्कार प्रदर्शित किया है कोशा की इयामल वेणी, कामदेव के इयाम खड़ग सहदा लहलहा रही है । उसकी सरल तरल श्रौर र्यामल रोमावच्ति सुश्चोमित हो रही थी । उत्तङ्क पयो- घर ऐसे प्रतीत हो रहे हैं जैसे श्रू जार रूपी पुष्प के स्तवक हो झथवा कामदेव ने प्रमृत कलशो को लाकर रख दिया हौ । । ५. धामिकता-- फागुकारोने वैयक्तिक मान्यताश्रो के श्राधार पर विभिन्‍न मोड दिये है । यद्यपि वसन्त वर्णन फागुश्नो का प्रमुख विवेच्य विपय था, परन्तु शनैः शनः वसन्त घन गौरा होता गया । वह केवल रूढि के रूप मे प्रयुक्त किया जाने लगा । जैन फायुकारों ने फागुश्रो को धार्मिक मोड दिया । जिणस्तवन, प्रकृति श्री श्र सासा- रिक विभूति पर सयम श्री की विजय, इन्द्रिय निग्नह, श्रपरिप्रह, साँसारिक उपा- दानो से श्रसपृक्त होने की वृत्ति का ही श्रघिक वरणुन किया । श्रपने फगुभ्रौ को सरस वनाने के लिए स्थूलिभद्र कोशा श्रौर नेमिनाथ राजल की कथा को उपजीव्य बनाया गया । नैमिनाथ श्रोर राजीमती की कथा इतनी लोकप्रिय हुई कि लगभग दो दर्जन फागू काव्य इस कथा से सम्बन्धित लिखे गये । इनके श्रलावा जैन कवियों ने कुछ ऐसे फागु काव्य लिखें, जो श्राध्यात्मिक विषयों से सम्बन्ध होते थे प्रथवा किसी तीथें की महिमा-स्तवन से सम्बद्ध । विवेच्य विपयो का वैविध्य जैन फागुकारो मे बहुत श्रघिक पाया जाता है । लेकिन झ्न्त सभी का सयम श्री मे होता है । वैष्णव फागुकारो ने कृष्ण-गोपिका श्रौर छष्ण-रुकमिणी को भ्रपना विवेच्य पनाया } लौकिक फागु श्रव्यं ही भ्रपनी परस्परा परस्थिररहे। ४०० वर्षो के दीघं श्रन्तरालमे फागु काव्यो की रचना होती रही, जिससे भ्राभास होता है कि यह काव्य रूप यधेष्ट लोकप्रिय रहा होगा । । फागु्रो का श्राकार कही लघु हे, कही वृहत्‌ । परन्तु यह सुनिश्चित है कि फागु काव्यो मे वह गहनता, व्यापक श्रनु- भरत, मावोर्मियों का उद लन नहीं श्रा पाया जो किसो काव्य-रूप में अपेक्षित है)




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