गोरा बादिल चरित्र | Gora Badil Charitra

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Gora Badil Charitra by फतह सिंह - Fatah Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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एक पर्यालोचन { ११ उसके वर्णेन बड़ लंवे-लवे श्रौर उपमादि श्रलकारो से भरे पड़े हैें। कवि जसे श्रपनी काव्य-शक्ति का प्रदर्शन करने बैठा हो वैसा उसकी रचना पढ़ने से श्राभास होता हैं । जायसी के कुछ वर्णन तो ऐसे सुसलमानी पुट देकर किये गये हैं कि जिनको सस्कारी धघर्मनिष्ठ हिन्दू तो पढना सुनना भी पसन्द नही करेगा।' हेमरत्न की रचना सहज, शभ्रकृत्रिम हृदयंगम श्रौर भावोदुबोधक है । पदिनी श्रौर उससे संबधित राजा रत्नसेन, गोरा-बादल, राघवघेतन, शौर श्रलाउदौन भ्रादि सभी पात्र का चित्रण, उन-उनके चरित्र श्रौर स्वभावानुूप बहुत दही श्रनाडम्बर स्वरूपमे हृश्रा है । इसमे किसी प्रकार की छृत्रिमता का श्राभास नही होता है । पसा मालूम देता ह कि हेमरत्न मानो श्रपनी श्रांखो देखी घटनाग्रो का श्रनुभूत तथ्य स्वरूप वणेन कर रहा है । इस वणेन मे एक प्रकार से उसका मानो निजी श्रात्मीय सम्बन्ध व्यक्तहो रहा है। वहु चित्तौड के उस सकट के दु खद सस्मरणो का साक्षात्‌ सवेदन श्रनुभव करता हुश्रा श्रपनी कविता को वाणी दे रहा है। जायसी, मात्र एक तटस्थ व्यक्ति की तरह केवल श्रपनी कविता- शक्ति को बतलाता है । चित्तौड के इस दु.खद इतिहास से उसका कोई श्रतरंग सवधघ नही है । उस दुर्पटना के साथ उसका तादात्म्य-भाव नही है । इस दृष्टि से हेमरत्न को यह्‌ राजस्थानी रचना, एक पुण्य पवित्र कथा की तरह पढने- सुनने लायक उत्कृष्ट कोटि की धर्मं-कथा है । इसमे भारत की एक श्रेष्ठ सती नारी के शीलब्रत का श्रौर सच्चे स्वामि- भक्त वीर राजपूत योद्धा के स्वधर्म-रक्षक उदात्त जीवन-त्रत का श्रद्धापूणं भ्रालेखन है । # पद्मिनी की कथा हमारे देश भौर राष्ट्र के एक श्रत्यन्त दु.खद, सकटपूणं श्रोर विपत्तिजनक समय का हृदयविदारक'स्मरण कराती है । पद्धिनी कल्पना- कल्पित केवल एक मनोरंजक कहानी की सामान्य नायिका नही है-वह्‌ हमारी सस्छत्ति-समृद्धि भौर गरिमा कौ वास्तविक ज्योति की प्रतीक-सी प्रज्वलित दीपिका थी, जो उस प्रलयकाल के प्रचण्ड श्रघड़मे स्वयं विलीन दहो गई श्रौर संवत्‌ १३६० मे चित्तौड़ के उस भस्मीभूत महादुगं मे, श्रपने राष्ट, देर, धमे श्रौर जातोय गौरव कौ रक्षा के निमित्त, संकड़ो सती-सुन्दरियो के साथ, भ्रमति की प्रचण्ड ज्वालाश्रो मे उसने श्रपनी श्राहृति देदी । इस प्रकार अपनी श्रनुपम श्रात्सनलि द्वारा उसने भ्रपनी जाति कौ भावी सन्तति के लिए उक्त विना के + जसे रतनसेन द्वारा बादशाह की चियाफत का (४५) वादशाह्‌ भोजखण्ड का वर्णन भ्रादि 1




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