लाल बहादुर शाश्त्री मेरे बाबू जी | Lal Bahadur Shastri Mere Babu Ji

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Lal Bahadur Shastri Mere Babu Ji by सुनील -Sunil

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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18 / लालबहादुर शास्त्री, मेरे बाबूजी भी जाने कितने लोग हैं, जो मेरे इन नामों के चयन की मुक्त कण्ठ से प्रशंसा किये बगेर नहीं रह पाते, पर आज बातचीत का सिलसिला कुछ इस तरह बाबू जी के इद-गिद॑ चल रहा था कि मुझसे रहा ही नहीं गया और बरसों की छिपी बात वाली गांठ मेरे न चाहते हुए भी वरबस खुल ही गयी । विनख्र, वै भव और विभोर के नामों को लेकर एक ऐसी उनमूक्त चर्चा चल पड़ी जिसमे मेरे बड़े भाई-हरी भया ओर अम्मा सभी शामिल थे । वहां उपस्थित सभी के मन में यह प्रइन उठ खड़ा हुआ था कि मैं किस तरह विनर, वेभव जैसे नामों की कल्पना तक जा पहुंचा हूं । शायद अम्मा के सामने इस बात को कहने का और कोई दूसरा उपयुक्त समय नहीं आयेगा । कभी और दूसरे समय यह बात कहनी पड़ी तो सारी ईमानदारी के बाव जूद बहुत छोटा महसूस होगा अपने आपको ! बाबू जी कोलेकरसारा ही माहौल उतना जीवन्त, उतना चाजं और एलेक्ट्रिफाइड नहीं होता, तो शायद मेरे होंठों के बाहर यहू बात कभी नहीं आती । मैंने बताया--मेरे ये बेटे अपने बाबा से अपरिचित ही रहेगे । उन्हें मौका ही नहीं मिला अपने बाबा के प्यार को पाने का, क्यों कि मेरी शादी उनके निधन के बाद हुई। मेरे बाबू जी से परिचय पाने, उन्हें जानने- समझने की उम्र अभी इनकी नहीं । बाबू जी के न रहने के बाद इस बात से जूझता रहा कि उनके परिवार की कड़ी को आगे कंसे सहेजकर रख सकूंगा मैं । जब मेरा पहला बेटा हुआ तो यह्‌ प्रन ओर बडा होकर मेरे सामने आ खड़ा हुआ। इस बेटे के मन में यह जिज्ञासा केसे बोई जाये कि वह यह कभी जानने-समझने के लिए आतुर हो उठे कि उसके बाबा कैसे थे ? कया थे ? इसलिए बाबू जी के स्वरूप को मन में संवा रते हुए इन नामों की कल्पना गढ़ी कि आगे आने वाले समय में मेरा बेटा अपने बाबा के आदर्शो के प्रति खिचाव महुसूस कर सकं, उस सबको अपने जीवन में उतारने के लिए प्रेरित हो सके । इसके लिए मुझे सहारे के लिए मिले बाबू जी के गुण ! लगभग सभी लोग कहते और मानते हैं कि शास्त्री जी एक अतिशय विनम्र व्यक्तित्व वाले व्यित थे, अतः उनसे विनम्रता उधार लेकर अपने बड़े बेटे का नाम मैंने रखा विनम्र । अब यह इस बेटे का दायित्व




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