पर्यावरण और जीव | Paryavaran Aur Jeev
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
204
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्रकृति भी पोशाक बदलती है / 15
चलती हैं । पत्तियों के इन छोटे छोटे रन्घ्नो या इवसन-उपकरणो से ही दवसन होता है,
जो यो हो हर समय ही होता रहता है कि तु रात्रि मे जबकि प्रकाश सश्लेयण (फोटो
सिथेसिस) या भोजन निर्माण की क्रिया नही होती, बडी तीव्रतर से होता है। दिन में
धूप के प्रकाश मे पत्तिया अपने पणहरित (क््लोरोफिल) की सहायता ओर पानी तथा
कांबन डाई-मॉव्साइड की क्रिया से मण्ड निर्माण करती हैं । पत्तियों से ही उत्स्वेदन या
पानी के उड़ने की क्रिया भी होती है जिससे पौधे में ताप और जल की माता सतुलित
रखी जाती है और नीचे जढो से पानी तथा खनिज लवणो के धोल के ऊपर चढ़ने मे
सहायता मिलती है । रेमिस्तान मे चूकि पानी का मभाव होता है इसलिए मर्स्यली
पौधों , जैंसे--बदुल, नागफनी आदि मे पत्ती की सतह से वाष्पन कम करने के लिए
पत्तिया चौडी और फैली हुई नही होती बत्कि मोटी, बारीक व छोटे छोटे काटो म धट
जाती हैं !
ह पत्ती का उदभव गौर परिवघन तने के सिरे पर एक बाहरी निकले भाग वे
रूप में होता है। तने पर यह एक जरा से बगल के उभार के रूप में प्रारम्भ होती है बौर
फिर धीरे-धीरे बढते हृए् विभिन अगो मे विभेदित होती चली जाती है, जब तक कि
वह एक सुदर, चमकीली, हरी भौर चौडी आकृति मे नहीं बदल जाती । पत्ती के मुख्य
रूप से तीन भाग होते हैं । पहला पर्णाधार (लीफ बेस) , दूसरा डठल या पत्रवृत्त भौर
तीसरा पत्रदल या पत्रफलक होता है ।
पर्णाघार डठल का फूला हुआ माग होता है जो पत्ती को तने स जाढता है भौर
उसके भार को सभाले रहता है। दूसरा भाग डठल या प्रवृत्त साधारणतया हरा भौर
बेलनाबार होता है जिसका काय है पत्ती को ऊपर उठाए और फलाए रखना कि वह
अच्छी तरह प्रकाश पा सक । किततु कुछ पौघो में पत्रवृत्त का अभाव होता है और वे
वत्तद्दीन पत्तिया कहलाती हैं। इनके अतिरिक्त पत्ती का जो सबसे महत्त्वपूण अग है,
चह है पत्रदल या पत्रफलक जो शिराओ की सहायता से खूब अच्छी तरह से तना रहता
है। इसमे हरा रप्रद्रव्य पणहरित होन के कारण ही पत्ती का रगहरा होता है मौर
केवल इसकी सहायता से ही घूप के प्रकाश मे प्रकाश सइलेपण या भोजन निर्माण की
क्रिया सम्भव हो पाती है। पत्ती के इस अलग से हो पौषे मे इवसन तथा उत्स्वेदन जैसी
आवश्यक क्रियाएं होती हैं । इसमे फैली शिराओ के द्वारा दिन में धूप के प्रकाश मे बना
हुआ भोजन नीचे तने मा जडो मे जमा होने के लिए व नीचे जडो से पानी व लवणा का
घोल ऊपर पत्ती तक पहुंचाया जाता है !
पत्तियों पे मिरने की दप्टि से पौये मुख्यतया दो प्रकार के होते है--पणपाती
और सदाहरित । इसी तरह गिरने के आधार पर पत्तिया तीन प्रकार वी होती हैं ।
पहली तो वे होती हैं जो वटुत शीघ्र ही गिर जाती हैं और शीक्रपाती कहलाती हैं।
दुसरी वे, जो प्रत्येक मौसम के अत मे गिरती हैं, पाती कहलाती हैं और तीसरे प्रकार
थी कहलाती है स्थायी, जो पौषें पर एक से अधित मौसम तक लगी रहती हैं । पणपाती
पौधा मे पत्तिया एव निश्चित मोसम पर--जाडे या धुप्व मौसम में आरम्भ होने पर---
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