छात्र, आध्यात्मिक साहित्य और शिवानन्द | (Students, Spiritual Literature And Sivananda)

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(Students, Spiritual Literature And Sivananda) by स्वामी चिदानन्द जी - Swami Chidanand Ji

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१० दात्र, भ्राध्यात्मिक साहित्य रौरं रिंवानंदं प्रक होता है! शरीर की भांति मस्तिष्क कं भी आहार की श्रावद्यकता होती है । यदि पर को प्युगालामेंही सुन्दर चारा खिलाया जाय तं वह गन्दी वस्तु चुगने के लिए बाहर नहीं जायगा इसी प्रकार यदि मन को उच्च विचार-रूपी खाद्य पदार्थ, जो कि श्राध्यात्मिक साहित्य में प्रचुरत। से उपलब्ध है, प्राप्त हो जाय तो उसकी रुचि गंदे श्रीर तुच्छ साहित्य में न रहेगी । फिर भी श्राप इस बात को ध्यान में रखें कि यद्यपि झ्राध्यात्मिक साहित्य सदा ही सहायक हुआ करता है ; किन्तु एक व्यक्ति उससे कितना लाभा- न्वित होता है, यह उस व्यक्ति की क्षमता पर निर्भर है। श्रापको भी उसी सीमा तक लाभ प्राप्त होगा जहाँ तक कि श्रापके तैतिक चरित्र का स्तर होगा, आध्यात्मिक विषय में ग्रापकी जितनी रुचि होगी मरौर ग्रंथ तथा उसके लेखक के प्रति झापकी जितनी श्रद्धा होगी । जो वात समस्त आध्यात्मिक साहित्य के लिए सामान्य सूप से सत्य है वह्‌ शिवा- नन्द साहित्य पर भी चरितार्थ होती है । इसके साथ ही - शिवानन्द साहित्य में पापियों तथा नास्तिकों को भी परिवर्तित करने की अपनी विशे- पता है रौर इसका प्रमुख कारण है लेखक की दिव्य चक्ति । स्वामी जी का अ्भ्याह्वान बहुत ही प्रभावशाली है । उनकी लेखन-दौली बहुत टी सरल है । वे. पाठक को सीधे सम्बोधित करते हैं और इस भाँति अपने दिव्य उद्बोधक सन्देशो




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