मानव - जीवन का लक्ष्य | Manav Jeevan Ka Lakshya

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Manav Jeevan Ka Lakshya by हनुमान प्रसाद पोद्दार - Hanuman Prasad Poddar

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He was great saint.He was co-founder Of GEETAPRESS Gorakhpur. Once He got Darshan of a Himalayan saint, who directed him to re stablish vadik sahitya. From that day he worked towards stablish Geeta press.
He was real vaishnava ,Great devoty of Sri Radha Krishna.

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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शदे मानव-जीवनका ख्य साक्षयः' का उलटा “साक्षसाः' होता है । भोगासक्त साक्षर जीवनम वैराचिकताका ताण्डव चृत्य होता रहता है | ,ाखों नर- नारियेंकि एक दी साथ जला देनेवाले बमोकि आविष्कारक विज्ञानवेत्ता 'विद्वान्‌ ऐसे ही अछ्लर-मानव हैं । पिछले दिनों चीनमें अपने ही मतके 'एक विपक्षीकी लाशको, ठोग भूनकर खा गये ! यही राक्षसत्व है । यह निश्चित वात है कि जौँ पापम गोरव-वुद्धि होती है--पापकी सराहना होती हे, वहाँ पाप बढ़ता है ! जिसके पास कैसा आ गया, चहद पैँसा चाहे चोरीसे काया हो या टस अथवा अनाचार-भ्रष्टाचार-अत्याचार तथा हिंतासे--उस पैसेबालेको यदि समाजके द्वारा श्वड़? माना जाता है और उसका - सम्मान छोता है तो दूसरे लोग मी पैसा ही “बड़ा बनना चाहते हैं । तिनेमाकी अभिनेत्री जो एक साधारण स्तरकी अभिनय करनेवाटी, नाचनेवाली खो है, उसको देखनेके डिये भीड़ लग जाती है | इस मीडे आओफेसर भी शामिल होते हैं, अधिकारी भी । यह सब क्या है ! चोर-पुजा होनेपर चोरी और अनाचार-पुजा होनेपर अनाचाएका ही विस्तार होगा । यह पतनकी सीमा है, तामसी बुद्धिका प्रत्यक्ष 'परिचय है, जिसमें अनाचारको सदाचार,; बुराईकों भलाई और पापकों पुण्य समझा जता है| दूसरेके हकका लेना, दूपरेकी अभावग्रस्त बनाकर वस्तुका संग्रह दरना पाप है । गीता ( ३ । १३ ) में कड़ा है--- यन्नशिप्रादिनः सन्तो सुच्यन्ते सर्वकिल्विषेः 1 भुखते ते त्वघं पापा ये पचन्त्यात्मकारणात्‌ ॥




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