मानव - जीवन का लक्ष्य | Manav Jeevan Ka Lakshya
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
15 MB
कुल पष्ठ :
529
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
He was great saint.He was co-founder Of GEETAPRESS Gorakhpur. Once He got Darshan of a Himalayan saint, who directed him to re stablish vadik sahitya. From that day he worked towards stablish Geeta press.
He was real vaishnava ,Great devoty of Sri Radha Krishna.
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)शदे मानव-जीवनका ख्य
साक्षयः' का उलटा “साक्षसाः' होता है । भोगासक्त साक्षर
जीवनम वैराचिकताका ताण्डव चृत्य होता रहता है | ,ाखों नर-
नारियेंकि एक दी साथ जला देनेवाले बमोकि आविष्कारक विज्ञानवेत्ता
'विद्वान् ऐसे ही अछ्लर-मानव हैं । पिछले दिनों चीनमें अपने ही मतके
'एक विपक्षीकी लाशको, ठोग भूनकर खा गये ! यही राक्षसत्व है ।
यह निश्चित वात है कि जौँ पापम गोरव-वुद्धि होती
है--पापकी सराहना होती हे, वहाँ पाप बढ़ता है ! जिसके पास
कैसा आ गया, चहद पैँसा चाहे चोरीसे काया हो या टस अथवा
अनाचार-भ्रष्टाचार-अत्याचार तथा हिंतासे--उस पैसेबालेको यदि
समाजके द्वारा श्वड़? माना जाता है और उसका - सम्मान छोता है
तो दूसरे लोग मी पैसा ही “बड़ा बनना चाहते हैं । तिनेमाकी
अभिनेत्री जो एक साधारण स्तरकी अभिनय करनेवाटी, नाचनेवाली
खो है, उसको देखनेके डिये भीड़ लग जाती है | इस मीडे
आओफेसर भी शामिल होते हैं, अधिकारी भी । यह सब क्या है !
चोर-पुजा होनेपर चोरी और अनाचार-पुजा होनेपर अनाचाएका ही
विस्तार होगा । यह पतनकी सीमा है, तामसी बुद्धिका प्रत्यक्ष
'परिचय है, जिसमें अनाचारको सदाचार,; बुराईकों भलाई और
पापकों पुण्य समझा जता है|
दूसरेके हकका लेना, दूपरेकी अभावग्रस्त बनाकर वस्तुका
संग्रह दरना पाप है । गीता ( ३ । १३ ) में कड़ा है---
यन्नशिप्रादिनः सन्तो सुच्यन्ते सर्वकिल्विषेः 1
भुखते ते त्वघं पापा ये पचन्त्यात्मकारणात् ॥
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