मेरा बचपन | Mera Bachapan

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Mera Bachapan by नरोत्तम नागर - Narottam Naagar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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है, दण्ड देतेवाला रीर निदयी है, जदकि चानी का अगवान दयालु है, सभी को प्यार करता टै, सभी कमी मदद करने का तैयार है। यह सब होने पर भी अगर हम यानी में सभी वुछ अच्छा श्र माना में सभी कुछ वुग ही दंगे, ता यह हमारी बडी भूस होगी। ये बहुत ही जटिल पालन ई श्र इनकी जटिलता मे ही गोर्का के एततित्व का दाशनिक सार छिपा हुआ है। अलेक्सेई, जिस अद्भुत नानी का इसलिए ग्राभारी था वि. उसवी धदौलत उसकी श्ात्मा के बलावार नै षलेव योली , उसी नानी की सब कुछ सहन कर लेने, सभी तरह के लोगो श्रीर सभी तरह को परिस्थितियों से समझौता करने वी तत्परता , दुनिया को किस्से-वहानियों के जाले मे से देखो श्ौर चुरे तथा भयानक को देख पाने की उसको झसमंधता अलेक्सेई को परेशान करती थी । निदयी झात्माग्रो और निमम काय-वलापा वेः बारे म नाना की कहानिया चाहे कितनी ही भयानक क्या ने थी, अलैक्सेई को उनसे भी लाभ हुआ , उन्होंने उसे विस्ते कहानियों की चहाचौध से प्रधा होने से बचाया। नानी जीवन से सन्तुप्ट थी झौर झलेवसेई को भी इससे यश हाने के लिए प्रेरित करती थी। नाना ज़िन्दगी से बहुत नाराज थे श्रौर इसके साथ यह भी मानते थे कि इसे वदला नहीं जा सकता -भेडियो में रहो, तो भेडियो की तरह चीखो। गोकीं जीवन वे प्रति न तो पहला, श्रौर ने दूसरा रवैया ही स्वीवार कर सकते थे। दिनिरौ से जिन्दगी के साय भाष मिलाते , अपनी आत्मा में घृणा वी भावा पैदा करनेवाली सभी वुराइया और निममताओ को देखते हुए भी उहें इस वात का पवका यकीन था कि लोग सदा ऐसे ही नहीं रहेंगे जैसे भव है, कि वे बुराइयो पर विजय प्राप्त कर सकते हैं श्रौर श्रगर सहन करने की भ्रादत छोडयर सथप वरना सीख जापेंगे, तब तो वे अवश्य ही विजयी हो जायेंगे। केवल इसी माय पर चलते हुए ही मानव श्रौर जनता कौ आत्मा का सया जम हो सकता है। दूसरा विपय “व्यक्तित्व का नाश” गोर्की की कई रचनाओं मे सामने श्राया है। किन्तु उनकी झतिम बड़ी रचना, चार खण्डोवाले विराट उपन्यास ” विलम समगीन वी फ़िदगी” से यह बहुत विस्तृत और पूण रूप में उभरा है। समगीनदाद लोगो की श्रात्मिष स्वतन्त्रता और ^ पुनद्द्यान ” वे रास्ते में एवं बहुत बडा रोडा है। यह किसी भी पद




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