सामायिक पाठादि संग्रह | Samayik Pathadi Sangrah

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Book Image : सामायिक पाठादि संग्रह  - Samayik Pathadi Sangrah

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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इपर रखे जाने पर बीरासन दोता है और बयि घुटने पर दाहिने पर का ठलुवा स्ख कर बैठने से सुखासन दोता हे । हे-स्थान उपर पत्र शद्वि में कह आये है वहा से जान लेवे । झ-सुद्रानदोनों दार्थों के घ्रमाव या श्रन्घन विशेष को कहते हैं । मुद्रा यहां चार मानी हैं । ै जिनमुद्रा योग मुद्रा वदना शद्रा या अलि सुद्रा थौर शुक्तिमुद्रा या. मुक्ताशुक्तिमुदा कोनो हाथों को धुटने पवन् सीपे क्षटका दैना सो निन- मुद्दा है। दोना दयेलियों को चित करके चमा देना सो योग सुद्रा दे । कटोरी या रिल्‍्ला दमा कमल या पत्र पुर (दौना) की भाति श्ररलि्यो को सटाकर हाथों को चाधना सो थञ्जरि सुद्रा ६। श्रौर अपने दोनों हाथ जोद लीक्ञिय रिरि दोनो घगूठें थीच में डालिये और इस तरह पोत दी नये कि हाथों का ाकार जुड़ी सीप झसा या फूल की कली-सा बन जाय यदद शुक्ति मुद्रा दोती है। योग मुद्दा में उपविप्टासन भर रोष दीनो मुद्रा ों में उद्धासन दी दोता है। शनयोनों दायों को जोढ कर प्रदक्षिणा रूप घुमाना सो अआवते है इ-धोनों दाय जोड़ कर प्रणाम करना सो प्रशाम या शिर है 1 उ-भूमि को स्पर्श करते हुए हाथ जोड़ कर टोक देना सोनतिहै। रुविकर्म फिसे कहते हैं ? न्लामायिकरतव--पूर्वेंच कायो्सरय चतुर्विशतिस्तवपयन्त “हतिकर्म' इत्युथाते ।-मूलाचार टीका




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