राजस्थान के ब्रजभाषा साहित्यकार | Rajashthan Ke Brajabhasha Sahityakar
श्रेणी : काव्य / Poetry
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
254
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about गोपालप्रसाद मुदगल - Gopalprasad Mudgal
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्रधान रचनान के अंकुर अंकुरित हौते रहे। अवधी के हौते भए ब्रजभापा की ओर
रुझान ब्रजभाषा के कवि पं. श्याम बिहारी, हरिजू प्रणयेश सनेही, हितैपी, शंकर
त्रिशूल + कै सम्पर्कं मे आए। आपकी प्रारम्मिक रचना की एक
वानगी देखौ-
पिय के रस पीयूष कौ, पिय राधा सुधि हीन।
फेसौ अचरज देखिकै, कृष्ण भए अति दीन
श्री धे मुख कमल कौ, लखे सु चन्द्र चकोर
वा वि राधे पदन लखि, विहते नंद किशोर
{1 आनंदीलात आनंद
या संकलन के चौथे कचि श्री आनंदीलाल आनंद मस्तमौला स्वभाव के
जन्मजात कवि दै । जन-जन के प्रिय श्री आनंद कौ जीवन सदा संकटन सौ गुजर
है याही सौ तप-तप कै इनकौ तन-मन कुंदन है गयौ है। रोजी-रोटी की खातिर
ने जानै कहा -कहोँ भटकनौ परौ पर कवहु जीवन मे हार नही मानी। अंधियारे कँ
पीकैं जीवन में रौसनी लाए हैं। साहित्यिक, सांस्कृतिक, सामाजिक क्रिया कलापन
मे जी जान सौं जुटे रहे। राष्ट्रीय आन्दोलन मे तौ जेल की हू हवा खाई पर का मजाल
है जो हिम्मत हारे हौँ। तवई तौ आज हू नर्वदेश्वर महादेव पै पूरौ कॉक रोली इनके
चरनन मे सीस नवावै।
आपत मेवाड़ की व्रजभूमि कांकरोली अर नाथद्वारा मे भक्तिमय वातावरण
में रहकैं भक्तिभाव पायौ । कवि सुदाम सौं छन्द रचना विधान सीघरौ) पर, 12 वरस
की उमर सौ टी अन्त्याक्षरी अरु तुकवदी करवे लग गए।जि सौक वढ़तौ गयौ । आपके
मामाजी श्री गोपीलाल ज्ञापटिया नै घनश्याम प्यारे के छन्द सुनाय~सुनाय कै विनकी
जिज्ञाप्ता वढ़ाई। श्री अनोखा, श्री मधु कौ सहयोग पायकैं आपकौ क्षेत्र और
विस्तृत मयौ।
ऐसे सधे साधे सरल चित्तवृत्ति वारे श्री आनंद कौ जनम नाधद्वारा मे भयौ।
पिततश्री मोड़ीलाल गौरवा अरु माता श्री चन्दावाई हतत । आपकी गृहणी कौ नाम है
सुंदरवाई। आपनै प्राथमिक सिच्छा ही पाई पर सत्संग अरु देसाटन सौ अच्छौ खासौ
अनुभव बटौरौ है। आपनै श्री नाथजी के मदिर में सेवा करी। प्राईवेर यस कन्ट्रोलर
रहे। दुकानदारी हू करी। पर अब आध्यात्यिक जीवन विताते भए साहित्य सृजन में
लीन हैं। हिन्दी, व्रज अर राजस्थान मे फुटकर छन्द लिखे है। कष्ट ब्रजमापा के छन्द
साहित्य मंडल नाधद्वारा अह राजस्थान ब्रजभापा अकादमी की न्रैमासिक पत्रिका में
छपे आपके भक्ति प्रधान छन्दन में दो छन्द देखवे जोग है।
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