सूक्ति - सुधारस भाग - 5 | Sukti Sudharas Bhag - 5

Sukti Sudharas Bhag - 5  by साध्वी प्रियदर्शनजी - Saadhivi Priydarshan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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म्यस-पूर्ति जिनशासन में स्वाध्याय का महत्त्व सर्वाधिक है । जैसे देह प्राणों पर आधारित है वैसे ही जिनशासन स्वाध्याय पर । आचार-प्रधान ग्रन्थों में साधु के लिए पन्द्रह घंटे स्वाध्याय का विधान है । निद्रा, आहार, विहार एवं निहार का जो समय है व्ह भी स्वाध्याय की व्यवस्था को सुरक्षित रखने के लिए है अर्थात्‌ जीवन पूर्ण रूप से स्वाध्यायमय ही होना चाहिए ऐसा जिनशासन का उद्घोष है । वाचना, पृच्छना, परावर्तना, अनुप्रेक्षा और धर्मकथा इन पाँच प्रभेदो से स्वाध्याय के स्वरूप को दर्शाया गया है, इनका क्रम व्यवस्थित एवं व्यावहारिक है । श्रमण जीवन एवं स्वाध्याय ये दोनो-दूध मे शक्कर की मीदस के समान एकमेक हैं । वास्तविक श्रमण का जीवन स्वाध्यायमय ही होता है । क्षमाश्रमण का अर्थ है क्षमा के लिए श्रम रत' ओर क्षमा की उपलब्धि स्वाध्यायसे ही प्राप्त होती है । स्वाध्याय हीन श्रमण क्षमाश्रमण हो ही नहीं सकता । श्रमण वर्ग आज स्वाध्याय रत हैँ ओर उसके प्रतिफल रूप में अनेक साधु-साध्वी आगमज्ञ बने हैं । प्रातःस्मरणीय विश्व पूज्य श्रीमद्विजय राजेन्द्रसूरीश्वरजी महाराजा ने अभिधान राजेन्द्र कोष के सप्त भागों का निर्माण कर स्वाध्याय का सुफल विश्व को भेंट किया है । उन सात भागों का मनन चिन्तन कर विदुषी साध्वीरलाश्री महाप्रभाश्रीजी म. की विनयसरत्ना साध्वीजी श्री ड. प्रियदर्शनाश्रीजी एवं डॉ. श्री सुदर्शनाश्रीजी ने “* अभिधान रजेन्द्र कोष मे, सूक्ति-सुधारस' को सात खण्ड मे निमित किया हैं जो आगमों के अनेक रहस्यों के मर्म से ओतप्रोत हैं । साध्वी द्वय सतत स्वाध्याय मग्ना है, इन्हें अध्ययन एवं अध्यापन का इतना रस है कि कभी-कभी आहार कौ भी आवश्यकता नहीं रहती । अध्ययन- अध्यापन का रस ऐसा है कि जो आहार के रस की भी पूति कर देता है। अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस ०» खण्ड-5 ७ 9




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