योग शास्त्र | Yog Sastra
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
46 MB
कुल पष्ठ :
640
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about मुनिश्री पदमविजयजी - Munishri Padmavijayji
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)५-- पंचम प्रकाश
( ११
५५ से ५६०
प्राणायाम का मनःशुद्धि के साथ सम्बन्ध ५१५
प्राणायामः स्वरूप, प्रकार, लाभ ओर
भेद ५१७
पंचवायु का वणेन, प्राणादिजय से
लाभ भौर उपाय ५.१८
धारणा : लक्षण, उपाय गौर फल ५२६
पाथिव आग्नेय, वारुण भौर वायव्य
मंडल का स्वरूप ५२३
प्राण-वायु हारा कायं की सफलता-
असफलता का ज्ञान ५-४
स्वर द्वारा ईष्टफल का ज्ञान ५२७
इडा, पिगला, धुषम्णा से कालादि का
ज्ञान ५२९६
आंख, कान आदि अवयवो से होने
वाला कालज्ञान ५२७
कालज्ञान के शकुन आदि विविध उपाय ४३८
उपश्ुति, शनंश्चर, लग्न, यंत्र, विष्टा,
मंत्र, छाया भादि द्वारा कालज्ञान ५४७
विभिन्न मंडलों द्वारा ईण्टानिष्टनिणय ५५३
वायु के निणेय का उपाय ५५४
नाड़ी बदलने एवं नाड़ी को शुद्धि का
उपाय तथा नाडी-संचारज्ञान काफल ५५६
परकायप्रवेशविधि ओर फल ५५०८
६ - षष्ठ प्रकाश ५६१ से ५६७
परकायप्रवेश पारमाथिक नहीं ५८१
प्राणायाम, प्रत्याहार एवं घारणा
इनका लक्षण व फल ५६२
७- सप्तम प्रकाश ५६३ से ५६७
ध्यान का क्रम, लक्षण, पिडस्थ मादि
४ ध्येय रूप ध्यान ५६४
पाथिवी, आग्नेयी, मारुती, वारुणी
भौर तत्वभू नामक ५ घारणाएँं ५६४
पांचों घारणाओं का लक्षण ५६४
पिडस्यध्यान का लक्षण ५६७
)
द--अष्टम प्रकाश
४५६८ से ५८१
पदस्थ घ्यान का लक्षण, विधि मौर
उसका फल ५६८
पद (मंत्र)मयी देवता कास्वरूप ओर
उसकी विधि उसका फल ५६९
विविध सत्रों और बिद्याओं के' ध्यान
की विधि मौर उसका फल ५७६१
पंचरपरमेष्टीवाचक देवों का ध्यान भौर
उसकी विधियां गौर फल ५७२
मायानीज द्धी एवं क्ष्वीं विद्या के
ध्यान की विधि व उसका फल ५७६
पच-परमेष्टी-मत्रबीज आदिका स्मरण ५८०
वौनरागतायुक्त पदों का ध्यान ही
पदस्थ ध्यान ५८१
- नवम प्रकाश ५८२ से ५८
रूपस्थध्यान का स्वरूप, विधि और
उसका फल तथ। असटच्यान त्याज्य ५८२
- दशम प्रकाश ५८५ से ५६१
रूपातीतध्यान का स्वरूप भौर फल ५८१
पिण्डस्थ आदि चारों ध्यान तथा धमं-
ध्यान के ४ पाद ५८६
धमेध्यान का स्वरूप तथा उसका
टहलौ शकि पारलौकिक फल ५८६
एकादशम प्रकाश ५६२ से ६०५
णुक्लध्यान का स्वरूप, चार भेद एवं
उनकी विशेष व्याख्या ५९२
शुक्लच्यान के ४ भेद ओर उनका
स्वरूप ५६३
शुक्लध्यान के ४ भेदों में योग की मात्रा ६५
शुक्लघ्यान के चारों भेदों के अधिकारी
एवं फल ५९६
शुक्लध्यान का पारम्परिक फल :
तीर्थंकरत्व तथा उसका प्रभाव ५९४
के वलज्ञानी द्वारा शीघ्र कर्मक्षय के लिए
समुद्घात-प्रक्रिया भौर उसकी विधि ६०१
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