संस्कृत कवयित्रियों की रचनाओं का आलोचनात्मक अध्ययन | Sanskrit Kavayitriyo Ki Rachanao Ka Aalochanatmak Adhyayan
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
135 MB
कुल पष्ठ :
354
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)-3०~
पर्न हौकर् जारण करती रही, और प्रात: विच्छद का पूजन प्रारम्भ कर विया,
नित्य व्रत मैं लगी इयी तथा श्वैत वस्र कौ धारए कठी वै मन्त्रः सहति अग्नि
मैं आाइति प्रदान करती धी ।* ९ किन्तु रकारक कंकैयी इारा भरत कै राज्या+
सिक तथा राम कै चतुर्दश वभ कै वनवास कै वरदान माँग लेने पर वह दशरथ
की रेव मैं तत्पर वियीग की वधा सै पीडित हौकर राजा रै कृ कह ही
दैती इ ~ स्त्रियै कै लिर शास्र य तीन गतय बताथी गयी ई प्रथम, पति
तीय पुत्र 4 ततीय गति बन्धुया सम्बन्धौ जन, अन्य कोई थी. चौथी गति
नहीं हैं |”
करसन्यए पूनः रज दशरथ रै कहती ई ~ आपने एम की वनवास
दैकर् सम्पण राज्य तथा पन्त्यै सहित ऽपुफक,+ पत्र र्वं पुर्वासी जनाँ की थी
नष्ट कर विया हे, कैवल आपकी पत्नी खं पुत्र श प्रसन्न ई 1“
कौसल्या द्रारा कहै गयै वचना को सहन करने मैं अवमर्थ हीौकर राजा
दू्नाथ उनसे करबद्ध हौकए लमानयाचना' करने लगे । उनके वावयाँ की सुनकर कॉँसल्या
कौ तपनी त्रुटि का श्नुभव हुआ आर उन्होंने स्पष्ट शब्दाँ मैं श्रपने मावाधेश में
कहे गयै वचन क कारण पुत्र -विरह स्पष्ट दिया ~ *शॉक पे की” नष्ट कर
देता है | शौक शुत्ियाँ के ज्ञान की नष्ट कर वैता है, शौक समस्त वस्तुत्रा की
नष्ट कर दैता' है ऋः शौक कै समान अन्य कं श्रु नशे है 1*४
१, कौसत्यावि तदा दैवी रात्रिं स्थित्वा समाश्ति ।
प्रभाते चाकर्तैत्यजा विष्णातैः पुत्रह्तिषिएा ।।
सा दारभवसना इष्टाः नित्यं व्रतपरायण? ।
` श्रि बुहौति स्म तदा मस्त्रवत्कृतमडुण्गला' ।। वाल्मीकि रामाया, २। २०। १४११५
२. गतिरैका पर्तिनायगं परितीया गतिर त्मजः ।
ततीय ज्ञातय रा्ज॑श्चतु्ी नैव विधत वाल्मीकि रामायण २।६६। २४
३ हवं त्वया एषट्रपिर्दं सरा्ज्यं हताः स्म सव; सह पन्तरिभिश्व ।
हता सपुत्रास्मि हताश्च पौराः सूरश्च भायां च तव परहष्टौ ।
“वाल्मीकि एमाय २} ६। २६
४. शौक नाश्यते चैयं शौक नाशयते इशरूतम्
शौक नारयतै स्वं नास्ति शौकसमौ एषः 11 २६२ १४८वात्मी कि रापाथण)
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