सकारात्मक सोच की कला | Sakaratmak Soch Ki Kala

Sakaratmak Soch Ki Kala by स्वामी ज्योतिर्मयानन्द - Swami Jyotirmyanand

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सकारात्मक सोच की शक्ति 15 केवल सकारात्मक चिन्तन करके बहुत अच्छे परिणाम की आशा करते है तो आप अपने समस्त तत्रिकातंत्र को ही दबाव में रख रहे है| इसके विपरीत आप सकारात्मक कार्य मे सलग्न रहते हुए इस धारणा को पुष्ट करे कि चाहे कितना विलम्ब क्यो न हो इसका निश्चित रूप से शुभ परिणाम होगा । धीरे-धीरे आपके व्यक्तित्व का ऋणात्मक आधार समाप्त होता जाएगा ओर उसके स्थान पर धनात्मक स्वरूप प्रतिष्ठित ओर सुदृढ होगा | जब आप रचनात्मक चिन्तन के अद्भुत प्रभाव का अनुभव करने लगेगे तो न केवल आपका शरीर बल्कि, परिस्थितिया भी इस प्रकार परिवर्तित होने लगेंगी जिससे जीवन के सर्वोच्च लक्ष्य आत्मसाक्षात्कार की प्राप्ति होगी । सकारात्मक सोच का अन्तिम लक्ष्य भी यही है। पक ० प ६ दर स न) ५५ भक ~ स श्र हि सा लेन ^ “य है ॥ {3 ४ ५ ४ { रु 114“ ५५] न 1 ~> प | की # ५ | ( | ९ | ५ दे ~ ६। = गे इ ही न ॥ + भ त ! 3 {; ८ है कि




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