बापू के चरणों में | Bapu Ke Charanon Men

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Bapu Ke Charanon Men by ब्रजकृष्ण चांदीवाला - BrajKrishan Chandiwala

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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२ बापु के चरणों में १९१८ की कांग्रेस का वार्षिक अधिवेशन दिल्‍ली में हो रहा था । पं. मदनमोहन मालवीय उसके प्रधान थे । उनके लिए जो अंगरक्षक घड़सवार टुकड़ी बनाई गई थी, उसमें मे भी एक स्वयंसेवक था । अधिवेशन का स्थान पत्थरवाला कं, लालक्रिले के सामने, था । अपने डरे में जाते हए पंडितजी ने गुजरात से आए प्रतिनिधियों से पुा--'“ मोहनदास नहीं आए ? ” उत्तर भिला--“ नहीं, महाराज, वह बीमार हे । उन्हे पेचिश् हो गई हं ।'” मौालवीयजी उस समय के बड़ नेताजों मे गिने जाते थे। गांधीजी को जनता ने महात्मा की पदवी दे तो दी थी, कितु उनके साथी उनको नाम से ही पुकारते थे । बाद में तो वह सबके बापु बन गये । प्रथम महायुद्ध नवम्बर, १९६१८ में समाप्त हुआ, और भारत को गुलामी की जंज़ी रों में अधिक जकड़ने के लिए १९१९ मं रौलेट एक्ट बनाया गया, जो देश में काले क़ानून के नाम से प्रसिद्ध हुआ । इस क़ानून की भयंकरता सबसे पहले गांधीजी ने अनुभव की और उन्होंने उसके विरुद्ध एक महान आन्दोलन खड़ा कर दिया । जनता को जाग्रत करने के लिए उन्होंने देवा का भ्रमण आरम्भ किया और भाषणों तथा लेखों द्वारा रौलेट एक्ट की भयंकरता का दिग्ददोन कराया । उसी वषं उन्होने अपना साप्ताहिक पत्र 'यंग इंडिया' जारी किया था । काले क़ानून के विरोध में उन्हीं दिनों दिल्‍ली में, पत्थरवाले कुएं के मंदान में, एक विराट सभा हुई । गांधीजी का यह पहला प्रवचन था जो मेने सुना । में मंच के पास दबा-दबाया खड़ा था, मन में यह चाह थी कि एक बार उनके चरण छुकर अपने को कृता्थ कर लूं । वह सभा में प्रवेश करने के लिए आगे बढ़े और मेने अपना सारा साहस बटोरकर उनके वरण-कमलों की धलि अपने सस्तक पर लगा ली । क्रमदा: देश में काले क़ानन के विरुद्ध आग भड़क उठी । जनता में नये जीवन का संचार हुआ । पुराने युगों को पीछे ढकेलकर गांधी- युग ने प्रवेश किया । रात-दिन चारों ओर ' महात्मा गांधी की जय '




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