भक्तामर - सौरभ | Bhaktamar Saurabh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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। < । स १ । पच णमोक्कारो, सव्व पावपणासणो । ` १ ६ रः मंगलाणं च सव्वेसिं, यढमं हवड्‌ मंगलं. 11 (= | णमो अरहताणं ) अरहतों को नमस्कार | धर्म को ८५५ चलाने वाले अरहंत कहलाते हे | वे संसार की सब वस्तुओं को जानते है, देखते दे । उनका चरित्र ऊँचा होता है| वे अनंत शक्ति के स्वामी होते है | उनकी कुछ बाते विशिष्ट होती है जो अतिशय कहलाती हे | वे जनता को धर्म का ` | रास्ता दिखाते हे, इसलिए पूज्य हे। सिद्धो को नमस्कार । सिद्ध वे होते ह जो जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्त हो जाते है। उन्हे न बुढापा सताता है. न रोग सताता है। उन्हें किसी प्रकार का दुख नहीं होता | उन्हें परमात्मा, परमेश्वर कहा जाता है।




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