पावस - प्रवचन | Pavash-pravachan

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Pavash-pravachan  by नानालालजी महाराज - Nanalalji Maharaj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सुख का माग॑--समता ७ वना । चातुर्मास की दुष्टिसे मै यहां आभी गया हूं लेकिन अब जयपुर संघ को क्या करना हैं ! राजधानी की जनता को अपने जीवन में वास्तविक रूप से कुछ परिवर्तन लाना है ? या उन्हीं कुरीति रिवाजों के साथ अपने जीवन की इतिश्री करनीदहै। जो वातें इतने दिनों से चलती आ रही हैं, प्रत्येक व्यक्ति के साथ जो कुछ रूढ़ियां लगी हुई हैं जिनमें वहू अपने आपको आबद्ध पांता है, वह्‌ अपने आपको खोलने की कोरि नहीं कर पा रहा €, अपने आपको व्यापक वनाने के लिए ध्यान नहीं दे रहा हैं। अब थी उसी भावना के साथ उन्हीं रूढ़ियों में बँघे रहना है या अपनी आत्मा की भावना को साथ लेकर एकत्व भावना के साथ आगे वटना है ? यह सारा चिंतन जयपुर की जनता को करना है। जयपुर की जनता को ही नहीं अपितु संपूर्ण मानव समाज को इस विषय में गहरा चिन्तन करना है। मैं माध्यम बन रहा हूं । अपनी शक्ति के अनुसार कुछ बातें वतला रहा हूँ । लेकिन मैं जो वतलाता हूँ वही आप ग्रहण कर लें उसी को भाप मान लें यह मेरा आग्रह नहीं है । मैं जो कुछ वातें कहता हूं उन बातों को आप समझने की कोशिश करें । यदि आपको सत्य, तथ्यात्मक लगे, आपको सहीं चीज माल्‌ हो, यदि आपके जीवन के लिए हितावह हो, तो ग्रहण करें । में किसी के ऊपर थोपने की स्थिति में नहीं हूं । हां, यदि किन्हीं को मेरे विचारों को समझने में भ्रांति हो जाय तो उस भांति को निकालने के लिए हर व्यक्ति के लिए दरवाजा खुला है। वे दिल खोल कर पूछ सकते हैं कि ये विचार आपने किस रूप में कहे हैं? इनका क्या तात्पर्य है ? इसके लिए मैं सदैव तत्पर हूं । लेकिन आगे जिस स्थिति से आप लोगों को, एक प्रकाश प्राप्त करना है ओर नितान्त समतापूर्ण स्थिति के साथ यदि, कुछ कार्य प्रारम्भ ० करना है तो आज जो समाजवाद की पहल राजनैतिक क्षेत्र में चल रहो है उसमें जिन-जिन वातों की कमी हैं, उन कमियों पर




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