आधुनिक हिन्दी काव्य में आध्यात्मिक चिन्तन का स्वरूप और विकास | Aadhunik Hindi Kaby Men Adhyatmik Chintan Ka Swarup Aur Vikas

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Aadhunik Hindi Kaby Men Adhyatmik Chintan Ka Swarup  Aur Vikas  by अनीता श्रीवास्तव -Anita Shrivastav

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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1 सचार करने वाली जीवन-शक्ति दोनो एक ही है । अर्थात्‌ ब्रह्म सर्वत्र है । हर चीज ब्रह्म से व्याप्त है । निस्सन्देह यह समस्त संसार ब्रह्म हे. उससे ही यह उत्पन्न होता है | उसमे ही यह लीन हो जाता है और उससे ही यह अनुप्राणित है । ““सर्वं खल्विदे बरह्म तज्जलानीति शात उपासीत जीवात्मा ओर ब्रह्मण्डीय आत्मा मे जो स्पष्ट दैत दिखाई पडता है, वह अज्ञान का परिणाम हे | इस अज्ञान से मुक्त हो जाओ, तब तुम देखोगे कि (तू वही है' ओर यँ ब्रह्म हू । आधुनिक दार्शनिको ने इस संसार की एकता को इस रूप मे देखा कि वह चेतना की उपज है, ब्रह्म की उपज है । अनेकता मे एकता का अर्थ उनके लिए यह था कि प्रकृति की विविध प्रक्रियाएं और उसकी अनेकानेक घटनाएं ब्रह्म की, परमात्मा की अभिव्यक्ति हैं | उपनिषदो के बाद आध्यासिक चिंतन का विकास आगे किस प्रकार हुआ इसे हम ब्राह्मण धर्म मे देख सकते हँ | ब्राहमण धर्म ओर अध्यास्िकता का स्वरूपः जनता के सामाजिक ओर आर्थिक जीवन मे जो परिवर्तन हूए थेवे वास्तविक तौर से उनकी धार्मिक मान्यताओं और उनके विश्व दृष्टिकोण से भी प्रतिदिग्वित हुए | प्रारंभिक दास प्रथा वाले समाज के आर्यो का धर्म ब्राह्मणवाद कहलाया । ब्राह्मणवाद ने ईसा पूर्वं पहली सहस्रादि के पूर्वद्ध मे, अर्थात्‌ ईसा पूर्वं दसवी ओर सातवीं शताद्दियों में मध्य रूप ग्रहण किया ओर क्रमशः पुरोहितो के साहित्य मे इसे विस्तार दिया गया | भारत मे धर्म पर आस्था सदा सामाजिक प्रगति के लिए प्रतिकूल नहीं रही | सच माना जाय तो इसने प्रायः ही उत्पीड़न और शोषण के विरुद्ध प्रतिरोध का रूप धारण किया। भारत में कितने ही सामाजिक और राजनीतिक संघर्ष धार्मिक सुधारों की आड़ मे लड़े गये । इस प्रकार धार्मिक आन्दोलनो ने, विशेषकर उस समय जब वे प्रारंभिक अवस्था में थे और उन्होंने किसी पंथ या संप्रदाय का रूप धारण नहीं किया था, एक गतिपूर्णं ओर प्रगतिशील भूमिका अदा की । जैसा कि हमारे इतिहास के कितने ही मोड़ों पर जनता में धार्मिक शिक्षाओं के प्रति आध्यात्मिक दृष्टिकोण ने विलक्षण सृजनात्मक शक्ति को जन्म दिया-ऐसी शक्ति को जन्म दिया जो अभूतपूर्व सामाजिक परिवर्तन लाने में सहायक हुई | 1 छान्दोग्य उपनिषद्‌-तीन, 14/14




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