न्याय - प्रदीप | Nyaipardeep

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रथम अध्याय । इसी तरह गायका लक्षण सींग, मदुण्यका रक्षण पंचेन्द्रियत्व (आदि ` मी अतिव्याप्ति छक्षणाभासके उदाहरण समझना चाहिये । श अन्याप्त लक्षणाभास तो लक्ष्यके भीतर ही रहता है और अति- व्याप्त रुक्षणाभास भीतर ओर बाहर-दोनों जगह-रहता है । रक्षणरूपमे कदेगये धर्मका, लक्ष्य बिलकुल न रहना ' असम्भव ` दोप है । जैसे गधेका रक्षण सीग । सींग किसी भी गंप्रेंम॑ नहीं होता, इसलिये यहां असम्भव दोष है ओर यह दोषवाला लक्षण, असम्भवि लक्षणाभास कहलाता है. । इसीतर्‌ह जीवका क्षण अचेतनत्व ओर पुद्र (प्रध्यौ आदि) कां लक्षण चेतनत्व आदि भी असम्भवि लक्षणामास है । कुछ ठक्षणाभास रेसे भी होते है, जिनमे अव्याप्ति ओर अति- व्याप्ति-दोनों-ही दोष पाये जाते हैं । जैसे-विद्ान उसे कहते हैं जो अंग्रेजी अथवा संस्कृत जानता हो । परन्तु वहुतसे विद्वान ऐसे हैं जो अग्रजी और संस्कृत दोनों नहीं जानते फिर भी वे विद्वान्‌ हैं; इसलिये अव्याप्ति दोष है। तथा बहुतसे मूख भी संगति आदिसे या मातृभाषा होनेसे अंग्रेजी या संस्कृत बोलने लगते हैं लेकिन वे विद्वान नहीं होते, इसलिये यहां अतिव्याप्ति दोष भी है । प्राचीन ग्रन्थ- कारेंनि ऐसे मिश्रलक्षणाभासोंका अछग उल्लेख नहीं किया है | क्योंकि चक्षणाभासके द्वारा ठक्षणके दोष ही कहे जाते हैं । हेत्वा- मासमे भी एक जगह अनेक दोष होते हैं, परन्तु मिश्रहेत्वा- भासोंका नाम अलग नहीं रक्खाजाता; क्योकि इससे व्यर्थका ' विस्तार होता है । यही बात क्षणाभासकें विषयमें भी समझना चाहिये । इसीलिये लक्षणाभासके तीन ही भेद किये गये हैं ;




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