न्याय - प्रदीप | Nyaipardeep
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
146
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्रथम अध्याय ।
इसी तरह गायका लक्षण सींग, मदुण्यका रक्षण पंचेन्द्रियत्व (आदि `
मी अतिव्याप्ति छक्षणाभासके उदाहरण समझना चाहिये । श
अन्याप्त लक्षणाभास तो लक्ष्यके भीतर ही रहता है और अति-
व्याप्त रुक्षणाभास भीतर ओर बाहर-दोनों जगह-रहता है ।
रक्षणरूपमे कदेगये धर्मका, लक्ष्य बिलकुल न रहना
' असम्भव ` दोप है । जैसे गधेका रक्षण सीग । सींग किसी
भी गंप्रेंम॑ नहीं होता, इसलिये यहां असम्भव दोष है ओर यह
दोषवाला लक्षण, असम्भवि लक्षणाभास कहलाता है. । इसीतर्ह
जीवका क्षण अचेतनत्व ओर पुद्र (प्रध्यौ आदि) कां लक्षण
चेतनत्व आदि भी असम्भवि लक्षणामास है ।
कुछ ठक्षणाभास रेसे भी होते है, जिनमे अव्याप्ति ओर अति-
व्याप्ति-दोनों-ही दोष पाये जाते हैं । जैसे-विद्ान उसे कहते हैं
जो अंग्रेजी अथवा संस्कृत जानता हो । परन्तु वहुतसे विद्वान ऐसे हैं जो
अग्रजी और संस्कृत दोनों नहीं जानते फिर भी वे विद्वान् हैं; इसलिये
अव्याप्ति दोष है। तथा बहुतसे मूख भी संगति आदिसे या मातृभाषा
होनेसे अंग्रेजी या संस्कृत बोलने लगते हैं लेकिन वे विद्वान
नहीं होते, इसलिये यहां अतिव्याप्ति दोष भी है । प्राचीन ग्रन्थ-
कारेंनि ऐसे मिश्रलक्षणाभासोंका अछग उल्लेख नहीं किया है |
क्योंकि चक्षणाभासके द्वारा ठक्षणके दोष ही कहे जाते हैं । हेत्वा-
मासमे भी एक जगह अनेक दोष होते हैं, परन्तु मिश्रहेत्वा-
भासोंका नाम अलग नहीं रक्खाजाता; क्योकि इससे व्यर्थका
' विस्तार होता है । यही बात क्षणाभासकें विषयमें भी समझना
चाहिये । इसीलिये लक्षणाभासके तीन ही भेद किये गये हैं ;
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