ऋग्वेद | Rigved
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
29 MB
कुल पष्ठ :
884
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)रे.
ऐसे राजा का वरण । ( १४ ) उसका कर्चव्य । ( १५ ) उत्तम प्रार्थना ।'
( प° २६१-२६९ )
सू० | १८ |--स्पुत्य स्वामी, प्रखु । ( २-३ ) एक इश्वर की स्तुति
उसका चेद्योपदेश । ( ४ ) स्वासी का महान् भीतिप्रद् शासनवल ।
उसका कायं रानु का नांद । (६ ) राजा के अनेक उत्तम कर्चव्य । (७)
सर्वोपरि राजा के गुण । (८) प्रजा के सुखाथं प्रजा के भक्षको का दमन }
(६) महारथी होने का उपद्वेश ! उसको कन्तग्य का उपदेशा । ( १०)
विचुलीवत् दान्चुओ का नाश्च। (११) दुष्टो को धनापहार का दण्ड ।
( १२) अद्वितीय वरुशारी, प्रु जर राजा को वर्णन । ( १३ ) राजा
५५
को उपदेश । शासन, दान, उन्नयन, शक्तिवधेन । ( १४-१५ ) प्रधान
१ र
के स्तुत्य कायं ! ( ए० २६९-२७६ )
सू० [ १९ ]--शरीर मे प्राणवत् राजा की स्थिति । बह सहायकों
से वदे । (२) उसके कर्चव्य । ( ३ ) पझुपालवत् प्रजा का पाठक ॥
(४ ) सदाचारी प्रजा होने के उद्देश्य से राजा की स्थापना । (४) राजा
के उत्तम गुण । ( ६-९ >) उसके कर्तव्य । प्रजा का शक्तिवधंन ( १०
१३) अभ्युदयादि । प्रजा की नाना कामनाए । ( प° २७६-२८२ )
सु° [२० | -राजा के गुण। (२) विचुत्वत् राजा कासम-
चाय वना कर शचयुहनन 1 (३) राजा के उत्तम गुण। (४) ददा-
चरा परिपतपति का वल्याली पद् । उसका प्रभाव। (५) राजा
महारथी । (६) राजा, सेनापति का कर्च॑न्य, नञ्ुचि के दिरोमथन
का रहस्य । झुप्ण के वध का रहस्य । (७) पपिघ्रु शतुका रूप)
उसका दसन । जहाये धन का दान।(८) र्टूमाता का वालरुवत्
सुर राजा । दासनाथं उत्तम उपकरण, दलानरा, हस्ती यान, सैन्य बल,
भादि का ्रहण। (९) न्यायासन पर विराजे जधिकारी के कर्चव्य ।
(१० ) उत्तम सैन्यशिक्षा! (११) राजा के पितातुट्य कर्तच्य |
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