आदर्श साहित्य | Aadarsh Saahitya

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Aadarsh Saahitya  by धीरेन्द्र वर्मा - Dheerendra Verma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१०. ति, आदर्श साहित्य दिया करता था । सेनाओं * की प्रत्येक गति की ख़बर ईरा- नियो को मिल जाती थी शरीर उसका मुकाबला करने के लिए, उन प्रयल्लों को' विफल बनाने के लिए वे प्रहे से ्ैयार हो जाते थे। यही कारण था कि जान लड़ा देने पर भी यूना- नियो का विजय-प्राप्ति न हाती थी । इस देशद्रोह के पुरस्कार मे पासोनियस को मुह॒रां की थेलियाँ मिल जाती थीं । इसी कपट से कमाये हुए धन से वह भेग-विलास करता था, उस समय जब कि देश पर घोर सङ्कट पड़ा हुश्रा था उसने अपने स्वदेश का अपनी वासनाझओओं के लिए बेच दिया था, अपने विलास के सिवा उसे श्रोर किसी बात की चिन्ता न थी, कोई मरे या जिये-देश रहे या जाय--उसकी बला से! केवल अपने कुटिल स्वाथे के लिए देश के पैरों में गलामी कौ बेड़ियाँ डलवाने पर तैयार था ।. पुजारिन अपने बेटे के दुष्टा- चरण से अनसिज्ञ थी । वह अपनी अँघेरी कोठरी से बहुत कम निकलती थो, वहीं बेटी जप-तप किया करती थी । पर- लक-चिन्तन में इहलोक की खवर न थी, बाहर की चेतना शून्य-सी हा रही थी । वह इस समय भी कोठरी के द्वार बन्द किये ्रपने देश कं कल्याण के लिष्क, देवो की बन्दना कर रही थो कि सहसा उसके कानों में आवाज़ आई--यही द्रोदी . है, ही द्रोही है ! ........ उसने तुरन्त द्वार खेलकर बाहर की श्रोर काँका. पासा- _ नियस के कमरे से प्रकाश की रेखाएँ निकल रही थीं. नीर




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