महिलाओं के प्रति हिंसा का समाजशास्त्रीय अध्ययन | Mahilaon Ke Prati Hinsa Ka Samajashastriy Adhyayan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(8) के सीकर जिले के दिवराला गाँव मँ एक 21 वर्षीय राजपूत कन्या रूप कवर अपने पति के साथ उसकी चिता में सती हो गई तो बड़े पैमाने पर इस प्रथा की भर्तसना की गई। परिणामतः “राजस्थान सरकार ने फरवरी 1988 में सती प्रथा के विरूद्ध एक कानून बनाया जिसके तहत किसी विवाहिता स्त्री को सती होने के लिए बाध्य करने वाले को सजा देने का प्रावधान है) इसी प्रकार प्राचीन समय में कन्या विवाह के समय माता-पिता द्वारा पुत्री को धन सम्पदा आदि के साथ विदा करना समाज द्वारा स्वीकृत था एवं यह सामाजिक समस्या कीं _ श्रेणी में नहीं आता था। कन्या हत्या, कन्या का जल्दी विवाह करना यह हिंसक गतिविधियों के परिणाम हैं| वर्तमान परिस्थितियों में महिलाओं के प्रति हिंसा समाज और राष्ट्र के लिए एक चिन्तन का विषय है यह स्थिति समाज में उनकी एक अपनी जन समस्या का रूप धारण कर चुकी है। डाक्टर शिव प्रसाद सिह द्वारा रचित “औरत” नामक उपन्यास में बताया है कि वर्तमान के मानव में मुद्रा, मदिरा, मत्स्य मोस एवं कामुकता की क्रिया दिन प्रतिदिन वठ्‌ रही हैं जो. परिवार समाज एवं राष्ट्र के लिए अधिक घातक साबित सिद्ध हो सकता दै। अतः सामाजिक समस्याएँ इतिहास एवं परिस्थिति के अनुसार परिवर्तित होती रहती है तथा समान के सभी खण्डं एवं वर्गो को प्रभावित करती हैं। इसलिए इनका अवलोकन वलोकन सामाजिक विचारधारा, मूल्यों. = एवं संस्थानों के सन्दर्भ में किया जाना चाहिए। साथ ही इनकी उत्पत्ति. ह व कारणों को सामाजिक सन्दर्भ मं खोजकर सामूहिक उपागम द्वारा इनके 1. माया - रूप कवर दाह की न्याय गाथा' 30 नवम्बर 1996. ` सववा




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