प्राकृत वाक्य रचना बोध | Prakrit Vakya Rachana Bodh
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
13 MB
कुल पष्ठ :
592
श्रेणी :
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No Information available about मुनि श्रीचन्द 'कमल' - Muni Srichand 'Kamal'
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१ वर्णनोध
व्णं-- प्रत्येक पुरणं ध्वनि को वर्ण कहते है । प्राकृत मे वर्ण के दो
भेद है--(१) स्वर (२) व्यज्जन ।
स्वर के दो भेद है--ह्लस्वस्वर और दीर्घस्वर । ल्लस्वस्वर की एक
मात्रा होती है । दीघंस्वर की दो माचाए होती है । संस्कृत में प्लुत्तस्वर होता
है, जिसकी तीन मात्राए होती है ।
०,प्राकृत मे प्लुत स्वर नही होता ।
° प्राकूनमे च्छ, चलू, लु स्वरो का प्रयोग नही हौता।
हस्वस्वर--अ, इ, उ, ए, ओ ।
वीर्धस्वर--गा, ई, ऊ, ए, ओ ।
ए और थो दीघंस्वर है, परन्तु प्राकृत मे ए और ओ से परे सयुक्त
व्यज्जन होने पर ए और भो को छस्वस्वर माना गया है । जँसे--एक्केक्क
(एकैकम्) , जोन्वण (यौवनम् ); आरोग्ग (आरोग्यम्) । प्राकूत मे ए गौर ओ
का प्रयोग नही होता । केवल (सू. १1१६६) से अयि को ऐ आदेश होता है ।
नियम १ (अथ प्राकृतम् १११) प्राइत मे ऋ, ऋ, लू, लु, ऐ, जौ, ड,
ज, श, ष, विसर्ग, प्लुत--ये नही होते । इ गौर अन अपने वगे के व्यजनो के
माच होति है।
ण्रङ्त मे व्यजने २६ है-
क, द, ग, च त्त,थ,द, धन
च, छ, ज्, ऋ प, फ, व, भ, म
ट, ठः 7) [= ण यः र् लः चः स, द क
° प्राकूतमेश, ष ओर वित्तं नही होते ।
° स्वर रदित इ. तथा द्वित्व ड. ड. भयुक्त नदी होता ।
° प्राकृत मे ड जौर ञ्ज का प्रयोग अपने वर्ग के ग्यंजनो के साथ मिलता
है, स्वतत्र नही--
पड़ को, पड़. खो, खड़.यो,. जड़ घा र
वञ्चु, वाज्छा, पन्नो, विज्की
° स्वर रदित व्यजन अत में नहीं होते है ।
० कोई भी व्यजन स्वर के बिना कु, चू, टू, तू. प् रूप में लकेजा
प्रयुक्त नही होता । ॥
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