सिध्दार्थ [महाकाव्य] | Siddhartha [Mahakavya]
श्रेणी : काव्य / Poetry
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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ओान्त; वीर आदि रस प्रधान होते हैं ( ३ ) इसमें धर्म, अर्थ, काम और
मोक्षका वर्णन होता है ( ४ ) यह सम्पूर्ण रूपसे लिखा जाता है ( ५) इसमें प्राकृतिक
दृष्योंका वर्णन होता है ( ६ ) इसमें मानव-चरित्रका चित्रण किया जाता है ( ७ )
इसमें उपन्यास और नाटकके सभी तत्त्व विद्यमान रहते हैं ।
क्या प्रत्यक महाकाव्य-कार महाकवि है !--ऐसा नहीं है। महाकवि वही
है जा मनुप्य-जीवनके . नैतिक. पक्चषको- अक्षुण्ण - रखे, जो . अपने साधन... तथा
-उदेश्यमे सतक रहे, तथा जो सांसारिक वर्णन इसलिए न करे कि स्वयं या
दूसरे आश्चर्य-चकित ह वरन् इसलिए कि सब लोग कविताका आनंद उठा सकें,
अपना चरित्र उन्नत कर सकें, हृदय विशाल कर सकें और मस्तिष्ककों गंभीर
मी सकें । सच्ची कविता अथवा सच्चे कवि जीवन-श्रमको दूर करते हैं, सांसारिक
दुः्खोंको सहनीय बनाते हैं, निजन निवासको भी नंदन-काननमें परिवर्तित करते हैं,
तथा हम जो कुछ देखते-सुनते हैं उसमें आनन्द और सौन्दर्यका आभास उन्हींकी
कपासे प्राप्त होता है । उनका काव्य संगीतमय होता है, अर्थात् उनके काव्य जो
विचार सन्निविप्ट होते हैं उनकी पहुँच उनके अन्तस्तल तक होती है,--वे उस गांभीरयमें
छिपा हुआ रहस्य निकाल लेते हैं। और वह रहस्य एक प्रकारसे संगीतमय होता है,
क्योंकि मानव-जीवनकी प्रत्येक अन्तरंग भावना सहज ही संगीतमें व्यक्त होती है ।
सारांश, प्रत्येक गंभीर विचार संगीतमय होता है क्योकि निसर्गका हृदय ही
संगीतसे ओत-प्रोत है । हाँ, सुननेकी योग्यता चाहिए । वह संगीतमय भाव एक
प्रकारका अनाहत नाद हे जो हमें अनन्त भावनाके निकट पहुँचा देता है और
एक क्षणके लिए, अनादि रसका आस्वाद उत्पन्न कर देता है ।
महाकविके हृदयमें क्या क्या छिपा रहता है, उसकी संगीतमयता कहाँ तक ष्वनित /
होती है और कहाँ तक मूक वेदना-मात्र रहती है, यह हमें नहीं ज्ञात होता । उसके
विचार वृक्षकी जड ह जो शेपनागके सिरपर तक चली गई हैं । पछव-वितान ऊँचा है
परन्तु मूल उससे भी अधिकं गहरा । महाकवि जे ङ कहता है वह तो विशार होता
ही है, जो नहीं कहता है वह अनुमानके द्वारा भी कठिनाईसे थराह्म होता है; उसकी
वाचालता उच होती है ओर निदशब्दता उससे भी अधिक गभीर ओर उच्तर । उसका
काव्य प्रतिध्वनित करता है कि परकृतिम अनेक प्रकारका सौन्दर्यं विद्यमान है ओर सदस
प्रकारके दव्य भाव दिखाई देते हैं,--इन देवताओंकी भक्ति जो जितना जी चाहे
करके अपने उदे्यकी पूर्तिं कर ठे 1 महाकवियोकी महत्ताका विचार सहसा यह् धारणा
उत्पन्न करता है कि संसारको अकबरकी उतनी आवश्यकता नहीं जितनी कि तुल्सीकी ।
हमे राजनीतिक सुक्ति नहीं चाहिए, स्व॒राज्य नहीं चाहिए; हमें तो एक ठुलसी चाहिए
जो हमें जीवन्मुक्त बना सके ।
. महाकविकी कृति कटिनसे कठिन ओर सरर्ते सरल होती है । तुलसी बड़े ही
रंभीर सादित्य-कार दै, परन्तु ह सभीकी पर्हुचेके भीतर । उनम कल्पना ओर कौश
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