रेखाचित्र | Rekhachitra

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Rekhachitra by बनारसी दास चतुर्वेदी - Banarasi Das Chaturvedi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कल्पना कीजिये हिन्दीका कोई पाठक सनु २२५२ कि तीन सौ वर्ष पूर्व वीसवी गताव्दीके पूर्वाडम यानी ०० से १९५ तक भारतका साधारण जनसमाज कँसे अपना जीवन व्यत्तीत करता था कविवर बना- तो क्या उसे प्रामाणिक रेखाचित्र मिल सकेंगे ? जिसप्रकार कवि रसीदास जैनने भारतवर्षका सर्वप्रथम झ्रात्मचरित अर््ध कवानक लिवकर हमारी मातृभापाका मुख उज्ज्वल किया था क्या उसप्रकार हम लोग वढ़िया-से-वढिया रेखाचिय लीचकर श्रन्य प्रान्तीय भापाग्ोंकि लिए उदा- हरण उपस्थित नहीं कर सकते ? ऐटम बमके इस यगमें भी कया क्सीकों यह बनलानेली जरूरत कि क्या विज्ञान क्या कला झौर कया इतिहास शरीर कया साहित्य सभी में सापदण्डोका परिवर्तन हो का हैं ? परमाणुग्रोकी महिमाका यह आ पहुँचा है और हम साहित्यिकोका कल्याण इनीमें है कि हम भ्रपना दृष्टि कोण युगवर्मावुकूल वना ले । श्वलौकिक महापुरुपोकी या बजाने- न दि के वाले भ्ौर उससे पैसा कमानेवाले बहुत पैदा हो जायेगे । आवन्यश्ता ऐसे कलाकारोकी जो साधारणमें भ्रसावारणके दर्गन कर सके नयावधित लद्वं के महत्त्वको पहचान सकें और जिनकी पंनी दृष्टि जाति-वर्ग धर्म देव इत्यादिकी सकीर्ण सीमाझोको पारकर मानव-मात्र ही नहीं मात्रमें एकताका शझ्तुभव कर सके । भारतकी राप्ट्रभापा और एथिया महादीपकी ऐसे ही कलाकारोकी प्रतीक्षा कर रही है । नई दिल्‍ली --वनारसीदास चतुर्वेदी




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