रिष्ट समुच्चय | Risht Samucchay

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[६] परग्पराके सभी श्राचायै ग्रणित, ज्योतिष आदि लोकोपयोगी विषयों के ज्ञाता हुए हैं । अतपव दुर्गदेव भी इन्हीं माघवचन्द की शिष्य परम्परा में हुए होंगे । दुर्गदेव ने इस प्रन्थ की र्ना लदमीनिवाम राज्ञा के राज्य में कुम्मनगर नामक पहाड़ी नगर के शातिनाथ चत्यालय में की है । विशेषज्ञों का अनुमान है कि यह कम्मनगर भरतपुर के निकट कम्हर, कम्मेर अथवा कुम्मेरी के नाम से प्रसिद्ध स्थान दी है। महामष्टोध्याय स्व० डा० गौरीशक्रर हीराचन्द भी इत षत को मानते हैं कि लदमीनिवास कोई साधारण सरदार रहा होगा तथा कुम्भनगग भरत पुर के निकट वाला कुम्मेरी, कुम्मेर या कुम्दर ही ड । क्योकि स चन्थ की रखना शौरसेनी प्रारूत में हरं हे, चरत. यष्ट स्थान भी शौरसेन देश के निकर ही होना चाहिए । कुछ लोग कुम्भनगर दुस्मलगढ़ को मानते हैं, एर उनका यह मानना ठीक नहीं अचता है, क्ष्योंकि यह गढ़ तो दुगंदेव के जीवन के बहुत पीछे बना है । कुम्भ राणा द्वारा विनिरमित मसिन्दा किले का कुस्भ विहार भी यह नही हो सकता है, क्योंकि इतिहास द्वारा इसकी पुषि नहीं होती है । अनब रि्रमुच्चय का ग्खना स्थान शोरसेन देश के भीतर भरतपुर के लिक्रट भ्राज वा कुम्हर या कुम्मेर है । दुगेदेव के समय में यह नगर किसी पण्हाड़ी फे निकट बसा डुभ्ना होगा, जहां श्राचार्य ने शान्तिनाथ जिनालय में इसकी रखना की होगी । यह नगर उस समय रमखणीक शोर भव्य रहा होगा । किसी चंशावली में लच्मी निवास का नाम नहीं मिलता है, श्रतः दो सकता है कि वह एक छोटा सरदार जाट या जदन राजपूत रहा होगा । यह स्मरण रखने लायक है कि भरतपुर के श्राधुनिक शासक भी जाट हैं, जो कि श्रपने को मदनपाल कः वशज कहते हैं । इतिहास मदनलाल को जदन राजपूत बतलाता हैं, यह टहन'पाल के, जो ग्यारहदीं शताब्दी में षयाना के शास थे, वतीय पुत्र थे। अतः इससे भी कुम्भनपर भरतपुर के निकट वाला कुम्द ८ ही सिद्ध होता है । य रिषटस्ुच्चय का रचना फाल -६० वी+ गाथा मे बताया +संवच्छर गसष्टसे बोल्ञीे णावयसी सजुत्त । सवरसुकषयारसि दिश्महम्मि ( य ) मूलरिक्खमि ॥




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