हमारा हिन्दुस्तान | Hamara Hindustan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१५ ५२८ ~ १२३३१४१ १५४ [4 [1 न ४७८४ प्व ठम्य ए ८प्म्य 6 ८८० दध4६१८ भन्ति गरा ४१ 9 ट ८६३ पट्टी कारीगरी से उठाते हैं जो उनके लिये कपडे; जूते, पुस्तकें ओर अस्तुरे बनाते हैं । यदि वे अपने सब काम स्वयं ही करना चाहते तो चजाय अपनी इस 'चतुराइ (अरे ! यह क्या कहा यढ़ों की चतुराई में भी कोई दाक हो सकता हैं ! ) उनका बहुत काम चहीं चलता । क्या वे ऐसा कर सकते १ विस्र नदी, थे ऐसा नहीं कर पाते । दस छोगों में से कोई भी, दाक्तिशाली से शक्तिशाली भर चालाक से चाछाक, इतना समय ओर इतनी शक्ति नहीं पा सकता कि वह्‌ अपनी सारी देनिक आवइ्यकत्ताओं को या उसके वीस हिस्से को भी पूरा कर से । इतने दिनों के अनुभव से हमने यह सीखा हैं । हम लोगों ने सारे काम क्षापस में वार छिये है । दम मे से कुछ खेतों में चावल, गेहूँ, तरकारी अर फल इत्यादि खाने की चीजें पैदा करते हैं, दूसरे कारखानों में कपडे, जूते, सोटर राय, रेडियो तथा अन्य चस्तुँं बनाते हैं और कुछ रोग मेज पर चैटे.टे पुस्तकें ही लिखते हैं । आज कल यह सिलसिछा इतनी दूर पहुंच गया हैं कि एक छोटे से छोटा कपडे का टुकड़ा वनने मे वीस मजदूर तरह तरह के काम किया करते हैं कपडे / ८4 ॐ १ ५१




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