विद्यासागर | vidhyasagar
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
19 MB
कुल पष्ठ :
624
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)$ 4 पूर्वपुरुष श्चौर जन्म-विवरण १३
, कीरसिह गाँव में उमापति तक॑-सिद्धान्त नाम को एक प्रसिद्ध
पण्डित रहते थे । राट देशमें वे अद्वितीय वैयाकरण माने जाते
थे! कहा जाता है कि मेदिनीपुर के प्रसिद्ध धनी चन्द्ररोखर घोष
की माताके श्राद्धमे जा अध्यापक पण्डित निमन्त्रण पाकर जमा
हए धे उनमें नवद्रीप के उस समय के प्रधान नैयायिक पण्डित शङ्कर
त्क -बागीश भी उपस्थित थे । उन्होंने उमापति तक-सिद्धान्त की
असाधारण व्याकरण-पटटुता देखकर प्रसन्न होकर सबके सामने
उनकी वड़ी वड़ाई की ।. इससे उनकी प्रतिष्ठा और आदर बहुत वढ़
गया था । रामजय वर्कभूपण घर छाड़कर जाते समय जिस अपनी
पत्नी दुर्गादेवी का वाल-वच्चों सच्ित वचनमालीपुर में रख गये थे वे
इन्हीं उमापति वकं-सिद्धान्त की तीखरी कन्या थीं । तर्कभूपण महा-
शय के देशयाग के उपरान्त दुगदिवी ऊ समय तक ता कष्ट सदहती
हई ससुराल मे ही रहीं श्रर फिर जव क्ट न सदा गया तत्र वीर-
सिंह में अपने पिता के घर जाकर रहने ल्गीं। दुर्गादेवी के दो
पुत्र थे। बड़े का नाम ठाकुरदास श्रौर छोटे का कालिदास
था । उनके चार लड़कियाँ भी थीं । बड़ी का नाम संगला, मँभली
का कमला, तीसरी का गोविन्दमणि श्रौर छेाटो का अन्नपूर्णा था!
इन सवमे चड़ विद्यासागर कं पिता ठाझुरदास थे ।
दुर्गादेवी लड़के-लड़कियां सहित पिता के धर रहने लगीं ।
उनके पिता उमापति तकंसिद्धान्त महाशय वड़े दर शरैपर यल्ल से
नाती श्रीषर नविनियो का लालन-पालन करने लगे । थोड़े दिनों तक
ता दुगदिवी को यहाँ कोई कष्ट नहीं मिला शोर उससे उन्हें यह
आशा हई कि-यहां मेरे दिन सुखसे कट जार्यैगे । किन्तु कुड दी
दिनों मे उनकी यदह श्राणा निराशा के अन्धकार में लीन हा गरं ।
एक सा उनके पतिदेव लापता थे, दूसरे कई एक दुधर्यदे वचो को
User Reviews
No Reviews | Add Yours...