जैन तत्त्व मीमांसा की समीक्षा | Jain Tattv Mimansa Ki Samiksha

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Jain Tattv Mimansa Ki Samiksha by चांदमल चुडीवाल - Chandmal Chudeeval

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सर्दी हा (क कि) 8) १ पि पो जा न्ड ऋनि नि का 'देशफपणा है थना ते -उववहीस्करि पेते योग्य हैं। टी फा-यहा रात दारकररि कहे हें । जे. पुरुष अन्त के” पाक 'करि उतर्या जो रु सुचररप तिहर स्थानीय जो घस का. उक्ष 'रासाधारण भाव , निनिकू', 'अलुभवे ,हैं, तिथिके , प्रंशम ' द्वितीय -श्रादि व्यचेफ पाक फी परपरा करि पच्यमान जो छाशुद्ध, वरं तिन स्यानिय जो अनुक्छष्र॒ मध्यम'भाव तिस अयव क शदरपणाते , शुद्ध द्रव्य का प्मादेशी पणा करि-प्राट किया ह ध्यच- लिन श्र्गड एफ स्वसाव रूप एक भाव जाने , ऐसा शुद्ध नय-है सोदरी उपरि ही उपरि कां एम ्रतिवर्शिका स्थानीयपुण्से जान्या हुक म्रयोजनवान द । दृदुरि जे; केदं पुरुष प्रयसःितौय, सादि छनेकृ, पाक की, परपरा, -करि;. पच्यमान. करि लो, न्वी सुत्रणं . पिसस्थःचीय जो चर्तु का श्रलुत्कृष्ट मध्यम -भाव ताक श्मनुमवें है, . तिनिके अन्त के पाक .कारि ही उतरया जो शुद्ध सुवरगं तिन स्थानीय व्ष्तु का, उत्छष्ट . भाव ताक. अभव, क्रि शून्य पणाते अशुद्ध द्रव्य का, आदेशी पणाकरि, ,दिखाया- दै- न्यास स्यारा एक भाव रवरूप नेक भाव ज़ानि ऐसा_इयवहार्‌ 'नय है। सोदी- विचित्र नेक ञे वणंमाला तिस स्थानीयपणंत्ति जन्यौ श्या तिस काल भयोजनलान्‌ दै ,] जाते तीथ.अर सी तीर्थ का फुल इनि दोडनिका ऐसा - दी .यवस्थित, पनां दे । तीथें. जा कद कृतरिप ऐसा तो व्यवहार थर्सें ार ज्ञो पार,होना सी, स्वहा -धर्मः का फल, अपना स्वरूप का._पाव्रना सो तीथ. फल. । श भभ नाः चकष उन्क च गाधा- „ शक 2 । 4 लो जिगमयं पवञ्जड ता मा, वचहार 'शिच्छये युदय । पक्कणं विणा चिञजर तित्थं; अय्णेण उण-त्र्द | ~




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