भूधर जैन शतक | Bhudhar Jain Shatak

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : भूधर जैन शतक  - Bhudhar Jain Shatak

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about अज्ञात - Unknown

Add Infomation AboutUnknown

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
भूधर जेन शतक १७ अपनो अंकाज कीनों लोकनमें जस रीनो । ` 1 ^ भ्त परभो विसार दीनों विषै वश्च जेर हे ॥ ऐसे ही गई विहाय अटपप्ती रही आय | नरपरजाय यह भांधेकी वटेर है ॥ . ' आये सेत मैया ! अब काल हे अवेया अहो । जानी रे सयाने तेरे अजों भी अंधेर हे ॥२८॥ २८- हे जीच तू बचपन में तो बालक रहा कुछ नहीं समझा,पीछे जवानी में घर के धंधा म खग गया लोक लज्जा के घास्ते वहुतेरा पापों का ढेर इकट्ठा किया अपना तो काम विगाड़ा और लोगों में यश लिया । अपने परमव को भूख गया। और विषयों में लगा रहा इसो तरह बहुत सी आयु गुज्ञर गई। जरा सी बाकी रही, दे जीव भ्य नर देह ऐसी है जेसे अंधेके हाथ में बटेर पकड़ी जावे तेरे श्वेत वार आगरम्मव काठ सानेवाखा है । दमने जानी हे भोरे पाणी तेरे जव तक मी अन्धे हे अथातूतू बुढ़ा पसं दो गया तचे भपना आगन्त अव भी नदीं सञ्चता ॥ मत्तगथंद्‌ । (सवेया) बाङपने न संभार सक्ष्यो कछ, जानत नाहि हिताहितहीको । योवन वेस वसी वनिता उर, के नित राग रद्यो लछमीको ॥ यों पन दोह बिगोई दिये नर,ड।रत क्यों नरके निजजीको । आये हैं सेत अजों शठ चेत “गईं सुगइं अब राख रहीको”॥२९॥ १९--हे भोले जीव त्‌ बार समय तो श्स वस्ते अपना कुछ सुधार नहीं सकता कि तुझे हित अदित का क्षान नहीं धा, तरुण अस्था में सजी ने द्वदय भें वास किया अथवा लक्ष्मी के उपार्जन के लोभ में छगा रददा इस तरह अपनी दोनों अवस्था जाया करदी । हे नर अब तू अपने आप को क्यों नरक में डारे हे अब तो तेरे सफेद यालू भागए भव तो चेत कर । गई सो तो गइ अब बाकी को तो राख अर्थात भव तो धम में तत्पर हो । | . कविच। कि सार नर दह सव कारजको जोग येह।




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now