भारतीय ज्ञानपीठ मूर्तिदेवी जैन ग्रन्थमाला | Bhartiya Gyanpith Murtidevi Jain Granthmala

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Bhartiya Gyanpith Murtidevi Jain Granthmala by डॉ हीरालाल जैन - Dr. Hiralal Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अरस्तविना ७ समय राजपुरीके उद्यानमे घागरसेन जिनराज पवार थे उनके कैवलज्ञानके उत्घवमं वह्‌ मयने पितके साय गाया था । भाप भी वहाँ पवारे थे इसलिए उसे देख आपका उसके साथ प्रेम हो गया था । वही जिनदत्त धनं कमानेके किए रत्नद्वीप अवेगा उसीसे हमारे इष्ट कार्यकी सिद्धि होगी 1 इस तरह कितने ही दिने वीत जानेपर जिनदत्त रलद्वीप आया । राजा गरुडवेगने उसका खव सत्कार किया भौर उसे सव वातत समञ्चाकर गन्वर्वदत्ता सौप दो । जिनदत्तने मौ राजपुरी नगरीमे वापस आकर उसके मनोहर नामक उद्यानमें वीणा स्वयवरकी घोपणा करायी 1 स्वयंवरमे जीवन्वरकूमारने गन्वर्वदत्ताकी सुधोषा नामक वीणा लेकर उसे इस तरह वजाया कि वह अपने-जापको पराजित समने लगी तथा उसी क्षण उसने जीवन्धरके गले वरमाला डाक दी । इस धटनासे काष्ठागारिकका पुत्र कारागारिक वहू क्षुभित हमा 1 वह गन्धर्वदत्ताको हरण करनेका उद्यम करने लगा, परन्तु वलवान्‌ जीवन्वरकुमारने उसे शीघ्र ही परास्त कर दिया । गत्ववंदत्ताके पिता गर्डवेगने अनेक विद्याघरोके साथ बाकर घखवको शान्त कर दिया सौर विषिपूर्वक गन्र्वदत्ताका जीवन्धरकरुमारके साथ पाणिग्रहण करा दिया । तदनन्तर इसी राजयुरी नगरीमें एक वैश्रवणदत्त नामक सेठ रहता था उसकी आभ्नमजरी नामक सतरीसे सुरमजरी नामको कन्या हुई थौ । उस सुरमंजरीकी एक श्यामलता नामको दासो थी, वसन्तोत्वके समय इ्यामलता, सुरमजरीके साथ उद्यानमें मायी थी । वह अपनी स्वामिनीका चन्द्रोदय नामक चूर्ण लिये थी भौर उसकी प्रशसा रोगोमे करती फिरती थी । उसी नगरीमें एक कुमारदत्त सेठ रहता था, उसकी विमला नामक स्वीसे गुणमाला नामक पुत्री हुई थौ । गुणमालाको एक विद्युल्लता नामको दाषठी थौ । वहः सपनी स्वामिनीका सूर्योदय नामका चूर्णं ल्य थौ गौर उक प्रशा लोगोमे करती फिरती थी । चू्णकी उल्कृष्टताको केकर दोनो कन्यामोमें विवाद चल पृडा । उस वसन्तोत्सवमं जीवन्धरकरूमार भो अपने मित्रोकि साथ गये हुए थे । जव चूर्णकी परीक्षाके लिए उनसे पूछा गया तव उन्होने सुरमंजरीके चूर्णको उत्कृष्ट प्विद्ध कर ब्ता दिया | चगरके लोग वसन्तोत्सवमें छोन थे । उसी समय कुछ दुष्ट वालकोंने चपठतावद्य एक कुत्तेको मारना शुरू किया । भयसे व्याकुक्त होकर वह मागा भौर एक कुण्डमे गिरकर मरणोन्मुख हो गया । जीवन्वर- कुमारने यह देख उसे अपने नोकरोंसे बाहर निकक्वाया भौर उसे पंचनमस्कार मन्त्र सुनाया जिसके प्रभावसे वह चन्द्रोदय पर्वतपर सुदर्शन यक्ष हुआ । पूर्वमवका स्मरण कर वह जीवन्घरके पास आया ओर उनकी स्तुति करने लगा । भन्तमें वह जीवन्घरकुमारसे यह कहकर अपने स्थानपर चला गया कि दुख गौर सुखमें मेरा स्मरण करना 1 जव सब लोग कीड़ा कर वनसे लौट रहे थे तव काष्ागारिकके अशनिघोप नामक हायीने कूपित होकर जनतामें अक उत्पन्न कर दिया । सुरमंजरी उसकी चपेटमे आनेवाली ही थी कि जीवन्वरकुमारने ठीक समयपर पहुंचकर हाथीको मद रहित कर दिया । इप धटनासे चरुरमंजरीका जीवन्धरके प्रति अनुराग वढ गया भौर उसके माता-पिवाने जीवन्धरके साय उसका विवाह कर दिया । * जीवन्वरकरमारका सुयक्ष सब ओर फैलने र्गा जिससे कष्टागारिक मन-ही-मन कुपित्र रहने लगा । “इसने हमारे हाथोको वाघा पहुँचायो है यह बहाना लेकर काष्टागारिकने अपने चण्डदण्ड नामक मुख्य र्षकको आदेश दिया कि इसे शीघ्र ही यमराजके धर भेज दो । बाज्ञानुसार चण्डदण्ड अपनी सेना लेकर जीवन्वरकौ ओर दौडा परन्तु मरे पहलेसे ही सावधान थे अतः उन्होंने उसे पराजित कर मगा दिया । इस १ गद्यचिन्तामणिमें चर्चा दै कि जीवन्घरकुमारने गुणसालाके चुणको उत्कृष्ट सिद्ध किया था, इसलिए सुरमंजरी नाराज होकर विना स्तान किये ही घर वापस चली रायी यी । २ गद्यचिन्तामणि आदिमे घर्चा है कि भोजनको सूँघनेके अपराधसे कुपित घ्ाह्मणोंने उस कुत्तेको दण्ड तथा पत्थर आदिसे इतना मारा कि वह मरणोन्मुख टो गया 1 ३ गद्यचिन्तामणि आदिमें यहाँ सुरमंजरीके साथ विवाह स कर गुणमाकके साथ विवाह करानेका उदढेख है । ४




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