भक्त नारी | bhakt nari

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bhakt nari  by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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शबरी १९१ हए गम्भीर खरसे कहा कि “शबरी ! क्या त॒ नाचंती ही रहेगी ? देख ! श्रीराम कितनी देरसे खड़े है ? क्या इनको वेठाकर च्‌ हनका आतिथ्य नहीं करेगी १ इन शब्दोसे शबरीको चेत इञा ओर उस- तौ षट च तदा सिद्धा ससुत्थाय कृताञ्जलिः । पादौ जग्राह रामस्य लक्ष्मणस्य च धीमरतः॥ पायमाचमनीयं च स्वं पादाद्ययाविधि । तमुवाच ततो रामः श्रमणी धमंखयिताम्‌ ॥ (वा० रा० श्रा० स० ७४) -धम॑परायणा तापसी सिद्धा संन्यासिनीने धीमान्‌ श्रीराम- ठक््मणको देखकर उनके चर्णोमं हयाय जोड़कर प्रणाम किया ओर पाय आचमन आदिसे उनका पूजन किया | सादर जल ले चरण पस्रारी । अति सुन्दर आसन बेठारी ॥ भगवान्‌ श्रीराम उस धमेनिरता शबरीसे पूछने ठगे-- कथश्चिसे निजिता विघ्नाः कषित वधते तपः। कक्चिसे नियतः कोप बाहार तपोधने॥ कच्चित्ते नियमाः प्राक्ताः कञ्चित मनसः सुखम्‌ । कश्चित्ते गुख्शुभ्रूषा सफला चारुमाषिणी ॥ (षान्राग्भाग्सन०् ७४)




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