दयानन्द लीला | Dayanand Leela
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
418 KB
कुल पष्ठ :
22
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( ९५ )
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ने घनकर हरये दरा वुद्धि ओर ज्ञान । लिख बैठे सत्या्थमें
चरमं लोप धौमान ॥ जो लडके लडकी शर सद्रश हों उन्हें
शूद्रकों देदेंवे । निज चरण समान लड़के लड़की उनके चदके में:
छे रेषे ॥ शद्ध पुज भौर द्िज कन्थाका हो जेव सिज चिचाद्।
दयानन्दके चेलॉमें हो क्यों न अधिक उत्साह ॥ जो समाज
गण शुर आरक्ता को तन मन से भव नदीं सेवे । स्वामीजी को.
जाने कच्चा लौर आद् से दामन भेवे-॥ लिया सेरे स्वामी
की थी छोटी 1 बुद्धि सैरे स्कासी ऋ थी मोटी ॥ ज्ञान उसको
था नहीं मरे बुरे क। 1 आज्ञा तेरे स्वामीती है लोटो ॥ ८ ॥
दयानन्द च्दी अजनज्ञता कहां तक करूं वयान । गऊ गध्रीको अप
ने लिखा है एक समान ॥ गऊ गधघी को समान लिखा विद्धान्
ने चपा दो विचार किया । बलदेव च्ही माता रोहिणी श्री उन ,
को पत्नी हो सुमार किया । द्ाय २ माताकों पत्नी छिस्त्
मदाराज । चिद्ानों को संद दिखलायें नददीं शर्म और लाज्ञ ४
हे प्यारेजी कंभकण की मूक एक योजन ची बतलाचें । तुक-,
सखीदास्तको दोष सेवा स्वामोजी गावं ॥ काङजय दर्शी इश्वरः
को कदने से भी इनक्रारः क्या । जव पड़ी विपति स्वामीजी
पर तो फिर इसका इच्करांर किया ॥४५॥ सोमनाधथके विषयमें
चिस्ती है टी वात । छोटे लड़के भी तुमे करदेंगे मब मात ॥'
मात मेरे सन्मुख तूने दरबात पे एऐ नादां खाया । दिखला ता-
रोष्छमे तदये मौ स्व्रामीनेतेरे जो फरमाया ॥ चुम्बकः की
शिला छगी थी वदां ये कदां लिखा उसने पस्य ॥ शो अधर
भत्ति खदोुई त्रे कड छथा क्रयो छपत्राया । दे प्यारेजी हाथी
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