दयानन्द लीला | Dayanand Leela

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Dayanand Leela by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ९५ ) ~~~--------~~-----~------~-----~------~-~-----~-----~-~ ने घनकर हरये दरा वुद्धि ओर ज्ञान । लिख बैठे सत्या्थमें चरमं लोप धौमान ॥ जो लडके लडकी शर सद्रश हों उन्हें शूद्रकों देदेंवे । निज चरण समान लड़के लड़की उनके चदके में: छे रेषे ॥ शद्ध पुज भौर द्िज कन्थाका हो जेव सिज चिचाद्‌। दयानन्दके चेलॉमें हो क्यों न अधिक उत्साह ॥ जो समाज गण शुर आरक्ता को तन मन से भव नदीं सेवे । स्वामीजी को. जाने कच्चा लौर आद्‌ से दामन भेवे-॥ लिया सेरे स्वामी की थी छोटी 1 बुद्धि सैरे स्कासी ऋ थी मोटी ॥ ज्ञान उसको था नहीं मरे बुरे क। 1 आज्ञा तेरे स्वामीती है लोटो ॥ ८ ॥ दयानन्द च्दी अजनज्ञता कहां तक करूं वयान । गऊ गध्रीको अप ने लिखा है एक समान ॥ गऊ गधघी को समान लिखा विद्धान्‌ ने चपा दो विचार किया । बलदेव च्ही माता रोहिणी श्री उन , को पत्नी हो सुमार किया । द्ाय २ माताकों पत्नी छिस्त् मदाराज । चिद्ानों को संद दिखलायें नददीं शर्म और लाज्ञ ४ हे प्यारेजी कंभकण की मूक एक योजन ची बतलाचें । तुक-, सखीदास्तको दोष सेवा स्वामोजी गावं ॥ काङजय दर्शी इश्वरः को कदने से भी इनक्रारः क्या । जव पड़ी विपति स्वामीजी पर तो फिर इसका इच्करांर किया ॥४५॥ सोमनाधथके विषयमें चिस्ती है टी वात । छोटे लड़के भी तुमे करदेंगे मब मात ॥' मात मेरे सन्मुख तूने दरबात पे एऐ नादां खाया । दिखला ता- रोष्छमे तदये मौ स्व्रामीनेतेरे जो फरमाया ॥ चुम्बकः की शिला छगी थी वदां ये कदां लिखा उसने पस्य ॥ शो अधर भत्ति खदोुई त्रे कड छथा क्रयो छपत्राया । दे प्यारेजी हाथी




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