प्रबन्ध परिमल | Prabandh Parimal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सन्धि दो श्रक्षरो या वर्णो के पास-पास श्राने से या यो कहिये कि उनके मेल से जो विकार होता है उसे सन्धि कहते है । यह विकार उच्चारण की सुगमता के कारण होता है । सीधे सादे शब्दों मे कहे तो श्रक्षरो के मेल को सन्वि कहते हैं । सन्वि मे दो भ्रक्षरो का मेल होता है श्रौर इस मेल के परिणाम-स्वरूप विकार होता है श्रर्थात्‌ उनके स्थान पर एक भिन्न वर्ण श्रा जाता है । उदाहरराय, घर्मार्थ >> घर्म + अर्थ, यहाँ श्र +- आर मिलकर श्परा' हो गया है । दिगम्बरन्लदिंकू +श्रम्बर, यहाँ क +-श्र मिलकर ग हो गया है । मातुदय = मानु + उदय, यहा उ + उ मिलकर ॐ हो गया है । यह न भ्रुलना चाहिये कि दो श्रक्षरो के मेल से सयुक्ताक्षर मी वनते है। जव दो या तीन व्यञ्जन मिलते हैं श्रौर उनके बीच स्वर नही होता, तो उनके मेल को सन्वि नही कहा जाता 1 “मत्स्य, महात्मा इसी प्रकार के सयुक्ताक्षर हैं । सन्वि श्रौर सयुक्ताक्षर मे केवल यही श्रन्तर है कि सन्वि मे दो श्रक्षरो के मेल से एक सिन्न श्रक्षर बनता है जब कि सयुक्ताक्षर मे ऐसा नही होता । सच्घि तीन प्रकार की होती है. (१) स्वर-सन्धि, (२) व्यञ्जन- सन्वि श्रौर (३) विस्े-सन्वि । (१) स्वर-सन्धि-दोस्वरो के पासभ्रा जने पर उनके मेल से जो परिवर्तन होता है उसे स्वर-सन्वि कहते है । जैसे रामानुज == राम + अनुज । महाशय = महा +श्राश्य 1 (२) श्यञ्जन सन्धि-जव एक व्यञ्जन दूसरे व्यञ्जन ग्रथवा स्वर से मिले और उनके मिलने से जो परिवर्तन हो उसे व्यञ्जन-सधि कहते ह 1 जैसे सजन = सत्त्‌ + जन । वाड.मय == वाक्‌ + मय । (३) विसर्गं सन्धि--जव विसे के साथ स्वर श्रथवा व्यज्जन का मेल हो ओर उसके मिलने से जो परिवतेन हौ उसे विसर्ग-सन्वि कहते रै । जैसे श्रघोगति श्रव +गति । निगुणन=ति +गुण।




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