काव्यसुधा | Kavyasudha
श्रेणी : काव्य / Poetry, साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
206
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( १ॐ )
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छथ छु०--दुल्दे के शरीर पर सास है, सांप ध्योर चपाल उसके
अलंकार है; वह् चसन जदायादी तथा भधकर दै] उप्ते साथ. भयानक
मुख बाद मून व्रत; पिशालन योगनियाँ और राक्षस है । नत क
देखने पर भी जो जीवित रहेगा, उसके बड़े पुण्य हैं था चही पार्वत
का चिवाह देखता । इस प्रकार वाह कों से घर र यही बात कही ।
श्रयं दोहा शिव भयदान के समाज को भली- भाँति जालकर'
स्के माता पिदा सुसकशने लने आर बहुत भाँति चालकों को चिडर
हो जाने थे णिए समसाया कि भय की कोई बात नहीं 1... -
रान्दाथ०- मैना = पादत्ती की माता । त्रास =मय। समेन
कसल् | बाउर पागल । जइन मूखे । सुरतरु < कल्पबूचा । शिर-
नारि = शिसाचल की स्त्री सेना । * 1 |
` व्याख्या-चो०--तं अगवान... ..-. ..... कुस कीन्दरा।
नगर निवासी बारात को ले श्ाये, उन्दोंने सब को दिश्ासार्थ
सुन्दर स्थान (जनमास) दिये। पारकती की साता मैंना ने श्ारती
सजायी तथा अन्य साथ को स्थियाँ मंगल सूचक गीत गाने लगी)
छन्दर हाथों म शु नोधित्त कंचन का थाल लेकर सैना हरपोद लित शिव
ञी श पर्न कदने चसी किन जन सहा जी का भयानक स्वरूप
देखा लो हृदय में भय उत्पन्न हुआ । स्निय्ा भनदश घरों से घुस गयी
और शिवजी जनमसासे को चल दिये । सेना ' वो बढ़ा दुख हुआ
उन्होंने पार्वती को अपने पास घुला लिया श्र अत्यन्त रनेह से गोद
सें बंढाकर नथनों सें 'ाँसू-भर कर बोली जिस विघात ने चुसको ऐसा
सुन्दर रूप ६५); - उस सूखे ते उन्दारे पस्टे-को वाचा कैसे नना
दिया । ने है
झर्थ- न्द् जिख विवाता ने तुसकों सुन्दरता, प्रदान की, उसमे
तुम्दारे दूल्दे को बावंता कैसे बनाया जो फण कल्प दरण में लभ्ना
तादय वह् जवदस्ी वनरूल मे लग रदा द । मे छदे लेकर भाङ् से
फिर पड़ँ गी; राग मे जल जाऊगी; समुद में कूद पड़ सी; 'थाहे 4९
उञ जाय और संसार भर में अपयश फल जाय पर जीते जी में इस
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