अनादि तत्त्व दर्शन | Anadi Tattva Darshan
श्रेणी : दार्शनिक / Philosophical
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
14 MB
कुल पष्ठ :
352
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)हमारे और आपके लिए प्रश्नचिह्नूं ही बना रहेगा । अन्त मे, आगे किसी दूर
भविष्य मे फिर सब एक ही रह जाएगा, अथवा सब शूल्प्रमे विलीन हौ जायेगा
यह् भी भविष्य के इतिहास की दुरुहं कल्पना. है 1 ससार के वतंमान मे वहुत्व
ही यथार्थं है। इस बहुत्व को हम अस्वीकार नही .कर सकते 1 व्याख्या का
-विषय ,भी यही वहूत्व है । इसी बहुत्व कौ उत्पत्ति की हमे व्याख्या करनी है ।
एकोऽहं बहटृस्याम (अल्प या अल्पतम से वहु की भृष्टि हो जाना) यही तो
मीमासा का विषय है। कितनी ही कल्पना आप क्यो न करें-बहुत्व की
उत्पत्ति न तो न्यसे हो सकती है, गौर न एक से, भर बहुत्व की सृष्टि को
भ्रयोजनता तौ शृत्यवाद या अद्रैतवाद के आधार पर अभिव्यक्त की ही नहीं
जा सकती ! इस दिशा मे -साख्य का “संहत परार्थत्वात्! सूत्र ही हमारे मागं
करा निदेशन कर सक्ताहै। आज का वक्ञानिक भी इस वात को स्वीकार
करता है कि समस्त सृष्टि क्रिसी महान् अतिव्यापक सूत्र मे ग्रथित है-ओौर
यह् चराचर सृष्टि निष््रयोजन नही है । यह सृष्टि न माया है, न घूल है, न
अपनी सत्ता मात्र के लिए है, और हम आस्तिक तो यह भी मानते हैं, कि सृष्टि
के निमित्त कारण (परम निर्माता) ने यह सृष्टि अपने आमोद-प्रमोद के लिए
भी नहीं बनायी-इसकी रचना से श्रारमतुष्टि उसका ध्येय नही था. -
=
‹ विज्ञानवाद, शून्यवाद गौर अदं तवाद इस मुष्टि कौ व्याख्या करने'मे -
असमर्थं रहे है । शून्यवाद ओर विज्ञानवाद को ही उप्िषदो की काव्यमये
सूक्तियो से जलकृत करके शकरस्वामी ने अद्वैतवादः कां ' प्रतिपादन ' किया
मन्यथा उनका अद्वैतवाद ` वौद्धो के शून्यवाद भौर विज्ञानवाद से बहुत भिन्न
नही है 1 विन्ञोनवांद भीरं शून्यवाद नास्तिको के देशेन हूँ ' और ' अद्द तवाद भी
तो नास्तिकतावाद का ही एक मोहक 'रूप है । यदि भाइन्स्टाइन के सपिक्षेता-
वादं को पुराने आचार्यो ने सुलक्षे ठंग से समक्ष होता, तो नं तो शृन्यवादकी
मावश्यकंता रहती मौर न अदैतवाद की ।' सोपेक्षतवाद ससार को मिथ्या
सही मानता, सापेक्षता से उत्पन्न घटनाओ की नियन्त्रित रूप से यह व्याख्या
करता है । सापेक्षता-एकं प्रकार का समवाय सवध है, जो उतना हो महत्व का
है जितना कि निमित्त कारणत्व ओर उपादान कारणत्व ! समवाय यथार्थता है,
इसके सचेष्ट होने के भी नियम हूँ । इसकी अनिर्वचनीयता भी चेज्ञानिक अनि
चेंचनीयतता हैं जिसे गणित के सूत्रों मे व्यक्त करने का प्रयास किया जा सकता
है, और प्रयास करना भो चाहिए 1 गणित के ये सूत्र यथाधेता की दिशा में
हमे प्रेरित करते हैं । वैज्ञानिक दर्शन इस प्रकार थथार्थता का दर्शन है [
वैदिक दर्शन समझने के लिए श्रुति को और सृष्टि को दोनों को समझना
परमावष्यक है, इसीलिए वैदिक अध्ययन के निमित्त वेदाग 'और उपवेदो का
ज्ञान मावश्यक हुआ । सीमित क्षेत्र मे इसी तत्त्वज्ञान के अनुशीलन के निमित्त
ऋषियो ने उपनिष्पदो की रचना की । चारो सहिताओ का तत्त्वज्ञान एक ही है,
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