भारतीय शिक्षा तथा आधुनिक विचारधाराएँ | Bharatiy Shiksha Aur Aadhunik Vichardharaen

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Bharatiy Shiksha Aur Aadhunik Vichardharaen  by विद्यावती मलैया - Vidyavati Malaiya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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चूदें-प्राथमिक दिक्षा २८४ ११ वर्ष बहुत दो मदस्वपूर्ण माने जाते दैं। ये प्रथम ६ दए न देवल उसके दारीरिक विदास की दृष्टि ये मदल्वपूर्ण दोते हैं वरन्‌ उसके मामछिक, सवेसात्मक तथा मावात्मक विकास की दृष्टि से भी बहुत अधिक महत्वपूर्ण दते हैं दारीर-विशान-दाद्ियों तथा मनोदैशानिकों के दोध-कायों से भी इन सथ्यी की सफलता का प्रतिपादन होता है | ब्रेइनरिंज तथा पिस्सेंट ने इसी लिए. लिखा है कि बच्चें प्रथम पॉच वर्षों में अपने दोप सम्पूर्ण जीवन की सोषा अधिक सीयते हैं। गेलेल (0८४८) का मी कथन दै कि स्पक्ति के चिडास दे शपूर्व, अनोखे तथा महत्वपूर्ण पश्न उसके चीवन के प्रथम पोच ष्णं में कैश्द्िठि रदते ईै । जरमीर्ड मद्दोदय ठया उनके साथी मी मानते दमि व फी यातु तक कारके मानव के जीवनद्ाल में शोनेवाले अधिकार महत्वपूर्ण अनुभवों से परिचित दो जाठा है । सानय-विकास-सम्पर्धी प्रयोगों तथा शोध-कार्यों से मी यद सिद्ध दो चुदा है कि बालक के प्रथम पॉँच या छः वर्ष उसके ध्पत्तित्य के विकास में बड़े प्रमावशली तथा मदसपूर्ण शोते हैं । इसके कारण ही बह सुममशित (२७९१८) या व्रिषटित (असमंनित) जीयन व्यतीत यरता है । रंगार के प्रायः सभी विद्ान्‌ू इस मठ से सदमत हैं । इसी लिए इस आसु के यालकों को उचित शिक्षान्व्यदस्थां की ओर अर अधिक प्यान्‌ दिया जानें एगादै। पूर्व-प्राथमिक्र शिक्षा का विशास थैने हो प्टेरो ने सामुदायिक नहेंरी की स्पापना बालकों के उचित विकास के किए. उपयोगी पवग थी तथा आदर्म राष्य दे लिए इसे आवश्यक माना था पर कमीनिपस (१५९२-१६७०) ही छोटे पर्चो दी धान्य सोलने के विनार पा प्रासमकता समश लाठा दै। फमीनिपस के पाद लोड (१६३२-१५०५) ने बालकों फी आदर्ते टालने शिप घारम्म से ही उपयुनाः प्रशितग को सदस्य पृर्ण बताया | रूसे (१७१२-१७८८) जे याण खो स्वरेन्पदा रथा उन्दुकः हिरन्य को मपू स्ना तया वेरयलडी (१७६.१८२७) ने परि दिपि में सुभार किया । भये धयम मर्मर सूद र७६९ में बोदररीन ने क्रम दे. यासरेय




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