श्रीमद्भागवतमहात्म्य | Shrimadbhagavat Mahatmya

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Shrimadbhagavat Mahatmya by हनुमान प्रसाद पोद्दार - Hanuman Prasad Poddar

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He was great saint.He was co-founder Of GEETAPRESS Gorakhpur. Once He got Darshan of a Himalayan saint, who directed him to re stablish vadik sahitya. From that day he worked towards stablish Geeta press.
He was real vaishnava ,Great devoty of Sri Radha Krishna.

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अ० २ माहास्म्यं ः ः की प्रिया और परम सुन्दरी हो ॥५॥। एक बार जब तुमने हाथ जोड़कर पूछा थां कि भे क्या करूं £ तव भगवानते तुम्हे यही आज्ञा दी थी कि 'मेरे भक्तोका पोपण करो |! | ६ ॥ तुमने मगवानकी वह आज्ञा स्वीकार कर छी; इससे तुमपर श्रीहरि बहुत प्रसन्न हुए और तुम्हारी सेवा करनेके लिये मुक्तिको तुम्हें दासीके रूपमे दे दिया और इन ज्ञान-वेराग्यको पुत्रोके रूपमें ॥ ७ ॥ तुम अपने साक्षात्‌ खरूपसे वेकुण्ठ्धाममे हयी भक्तोका पोपण करती हय, भूलोकमे तो तुमने उनकी पुष्टिके लिये केवल छायारूप धारण कर रखा है ॥ ८ ॥| तब तुम मुक्ति, ज्ञान और वेराग्यको साथ लिये ऐथ्वी- तख्पर्‌ आयीं ओर सत्यययुगसे हपरपयन्त वडे आनन्दसे रहीं ॥ ९ ॥ कठियुगमे तुम्हारी दासी मुक्ति पाखण्डरूप रोगसे पीडित होकर क्षीण होने ख्गी थी, इसलिये वह्‌ तो तुरत ही तुम्हारी आज्ञासे वेकुण्ठलोकको चली गयी ॥ १० | इस छोकमे भी तुम्हारे स्सरण करनेसे ही वह आती है और फिर चली जाती है; किंतु इन ज्ञान-वेराग्य- को तुमने पुत्र मानकर अपने पास ही रख छोड़ा है ॥ ११॥ फिर भी कलियुगम इनकी उपेक्षा होनेके कारण तुम्हारे ये पुत्र उत्साहदीन ओर बद्र हो गये है; फिर भी तुम चिन्ता न करो, मैं इनके नवजीवनका उपाय सोचता हूँ ॥ १२ ॥ सुमुखि ! कढिके समान कोई भी युग नहीं है, इस युगमे मै तुम्हें घर-घरमे प्रत्येक पुरुपके हृदयमें स्थापित कर दूँगा ॥ १३ ॥ देखो, अन्य सब धर्मोको दवाकर ओर भक्तिविषयक महोत्सबोको आगे रखकर यदि मैंने छोकमे तुम्हारा प्रचार न किया तो मे श्रीदरिका दास नहीं ॥ १४ ॥ इस कलियुगमें जो जीव तुमसे युक्त होगे; वे पापी होनेपर भी बेखटके भगवान्‌ श्रीकृष्णके अभय धघामको प्राप्त होगे ॥ १७५ ॥ जिनके हृदयमे निरन्तर प्रेमरूपिणी भक्ति निवास करती है, वे जुदधान्तः- करण पुरुष खप्नमे भी यमराजको नहरी देखते ॥१६॥ जिनके हदयमे मक्ति महारानीका निवास है; उन्हें प्रेत, पिराच, राक्षस या दैव्य आदि सपर करनेमे भी समर्थ नहीं हो सकते ॥ १७ ॥ भगवान्‌ तप) वेदाध्ययन, ज्ञान ओर कमं आदि किसी भी साघनसे वामे नदीं किये जा संकते; वे केवल भक्तिसे दही वशीभूत होते है | इसमें श्रीगोपीजन प्रमाण है ॥ १८ ॥ मलुष्योका ससन जन्मके पुण्य-प्रतापसे भक्तिमे अनुराग होता है । कठियुगमं केवल मक्ति, वेवक भक्ति ही सार है । भक्तिसे तो साक्षात्‌ श्रीकृष्णचन्द्र सामने उपस्थित हों जाते हैं ॥ १९ ॥ जो लोग भक्तिसे द्रोह करते है, वे तीनो छोकोमें दुःख-ह्दी- दुःख पाते है । पूर्वकालमे भक्तका तिरस्कार करनेवाले दुर्वासा ऋषिको बडा क्ट उठाना पड़ा था ॥ २० ॥ वस्‌, वस-- त्रत, तीथं, योग, यज्ञ ओर ज्ञानचर्चा आदि बहुत-से साघनोकी कोई आवश्यकता नहीं है; एकमात्र भक्ति ही मुक्ति देनेवाटी है | २१॥ खूतजी कहते हैं--इस प्रकार नारद जीके निर्णय किये हुए अपने माहाप््यकौ सुनकर भक्तिकरे सरे अङ्घ पृष्ट हो गये ओर वे उनसे कहने स्गीं ॥ २२॥ भक्तिने कहा--नारदजी ! आप धन्य है । आपकी मुझमें निश्चढ प्रीति हैं | मे सदा आपके हृदयमें रहूँगी, कभी आपको छोडकर नहीं जाऊंगी ॥ २३ ॥ सधौ । आप बडे कृपा है । आपने क्षणम दही मेरा सारा दुःख दूर कर दिया । किंतु अभी मेरे पुत्रोमें चेतना नहीं आयी है; आप इन्हे शीघ्र ही सचेन कर दीजिये, जगा दीजिये } २४ ॥ सूतजी कहते है-भक्तिके ये वचन सुनकर नारद- जीको बड़ी करुणा आयी और वे उन्हे हाथसे हिंठा- डुलाकर जगाने छगे ॥ २५ ॥ फिर उनके कानके पास मुह ख्गाकर्‌ जोरसे कहा; *ओ ज्ञान ! जल्दी जग पड़ी; ओ बेराग्य ! जल्दी जग पड़ो” ॥ २६ ॥ फिर उन्होने वेदध्वनि, वेदान्तघोप ओर बार-बार गीतापाठ करके उन्हें जगाया; इससे वे जेसे-तैसे बहुत जोर छगाकर उठे ॥२७॥। कितु आल्घ्यके कारण वे दोनो जमाई लेते रहे, नेत्र उघाड़कर देख भी नहीं सके ¡ उनके बार बगुलोकी तरह सफेद हो गये थे, उनके अड्ड प्राय: सूखे काठके समान निस्तेज और कठोर हो गये ये ॥ २८ ॥ इस प्रकार भूख-प्यासके मारे अत्यन्त दुब ह्ोनेके कारण उन्हे फिर सोते देख नारद जीको बडी चिन्ता इई ओर वे सोचने रो, अव सुभे क्या करना चाहिये १॥२९॥ ` इनकी यद नींद और इससे भी बढ़कर इनकी शृद्धावस्था




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