कॉपर्निकस | Kopnikas

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Kopnikas by वज़ीर हसन आव्दी - Vazir Hasan Aavdiश्री मुंशी - Sri Munshi

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श्री मुंशी - Sri Munshi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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उसे ठेसा लगता मानो जहाज नही, बल्कि जमीन का वह टुकडा, जिस पर वह बैठा है, खुद चल रहा है | कभी-कभी गर्मी के जमाने में घर के सभी लोग शहर से वाहर शाम को टहलने के लिए जाते । यहाँ अंगूर की बेले दूर-दूर तक फेली रहती और बच्चे मौका पाते ही बेलों के नीचे दौड़ने लगते । निकोलस लताओं के बीच से चाद की किरणों को आता देख कर आनन्द मे भर उठता । अपने भाई देण्ड्यू को वहु किरणें दिखाता । कभी-कभी वह्‌ रुताओ के नीचे से चांद के निकलने का इन्तजार करता रहता । इस परिवार को तोरन नगर के बड़े-बड़े परिवारों से मंत्री थी । कभी-कभी जब बडी दावते होती तो सभी परो से सेकड़ो बच्चे जमा हो जाते । ये बच्चे अपने' घरो मे जो वाते सुनते उन्हीं के बारे मे आपस मैं कानाफूसी करते । बडे-बूढे तो खाने-पीने और हंसी- मजाक भे ऊगे रहते, लेकिन बच्चे शहर में होने वाली वे सारी वाते एक-दूसरे को बता देते जो वड-वूढे एक- दूसरे से छिपाया करते । निकफोलस को एेसी दावतो मे बडा मजा आता | उसे दुनिया भर पी बाते सुन कर बडी खुशी होतो । वह रन सप बातो के बारे में बरावर सोचा करता और श्‌ # २ १ 9




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