आर्य समाज किस ओर | Aarya Samaj Kis Aur

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Aarya Samaj Kis Aur by द्वारिका प्रसाद सेवक - Dvarika Prsad Sevak

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रस्ताव ना ९ श द, क ~ ५ र दः प ~^ ^~^~^~^~ ~~~ ^~ ~ ^~ ^~ ^~ ˆ ^~~~~^~~-~^~^~~~^~ ^ ्रथवा राण्ट्‌ का कायापलट करने को. भगवान्‌ कृष्ण के दाव्दों से जगत्‌ के उद्धार कै ्िये अधर्म का नादा कर ध्म की स्थापना करने को, जो महापुरुष प्रगट हुख्रा करते है, उनमें महर्षि दया- नन्द एक थे | स्वर्गीय राजा राममोहनराय से लेकर श्राज तक जितने मी महापुरुष हुये है ओर जिन्होने भी इस अभागे देखा की गरी तथा पराधीन जनता की सेवा मै तन-मन-घधन लगाया है हमारे लिये वे सभी वंद्नैय हे, उन सभी के चरणों मे हमारा सीस शद्धा-भक्ति के साथ झुक जाता है श्रौर किसी. को छोटा या बड़ा बताना हमारी दृष्टि मे भयानक अपराध है । फिर भी हम यह कहने के लिये विवद्या हैं कि उस समय से इस समय तक के समय को महर्षि दयानन्द, लोकभान्य तिलक और महात्मा गान्घी के नाम से तीन भागों में विभक्त किया जा सकता है । इस रामायण का बालकाण्ड यां महाभारत का अादि-पवः महपि-काल्ञ था, किंष्किन्धा-काण्ड अथवा उद्योग- पवै लोकमान्य-काल था दौर लंका-काण्ड ्रथवा भीष्म-पर्य महात्मा-कलि ह| महर्षिं अ्रपने महान्‌ जीवन मौर विशाल काये से लोकमान्य और महात्मा जी जैसे महान्‌ पुरुषों की श्रेणी मे पिल्ले स्थान पर स्वयं ही जा विराजे है। भारत के इस समय के इतिहास को निष्पक्ष दृष्टि से लिखने वालों को . महर्षि के इस झधिकार श्रौर दावे कोनिश्चय है स्वीकार । करना पड़ या । ग्री स्वामी सत्यानन्द जी महाराज ने श्रीमदया- ४ नन्द प्रकाशा मे विलङ्कल ठीक लिखा दकि 'यमृतकीखोजम




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