जगद्विनोद | Jagduinod
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
137
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( १६ ) जगद्विनोद ।
कहै पदमाकर पिछाहेँ आय आदरसे,
छडिया छवीठों कत बासर बिते बिते ॥
मूँदे तहां एक. अछबेठीके अनोखे दृग,
सुदग मिचाउ नेक र्याठन हिते हिते ५
नेसुक नवायप्रीव धन्य धन्य दूसरी को,
आचक अचूक मुख चूमत चिते चिते ॥ ७४ ॥
दोहा--जढ बिहार पिय प्यारिको, देखत क्यों न सहेढ़ि ।
ठे चुभकी तजि एकतिय, करत एकमों केढि ॥
इति स्वकाया ।
|| अथ परक्मया लक्षण ॥
दोहा-दो$ जो तिय पएपुरुष रत, प्ररकीपा स्तो वाम ।
ऊढा प्रथम बखानहीं, बहर अनूढानाम ॥ ७६ ॥
जो व्याही तिप अरको, फपत ओरसो प्रीति ।
ऊढा तासों कहत है, हिये सखी रमरीति ॥ ७७ ॥
अथ ऊटाक्म उदाहरण
कवित्त--गोकुलके कृट्के गटीके गोप ॒ गायनके)
जोगि कष्ट को कू मारत भने नहीं ।
कहै पदमाकर परेम पिछवारनके,
द्रारनके दौरे गण अवगुण गने नहीं ॥
तरं चि चातुर रुहेियाहि कोऊ काहू,
नीके कै निचोरे ताहि करतः भने नहीं ।
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